________________ // 10 // // 11 // // 12 // // 13 // // 14 // // 15 // ता सुत्तुत्तविउत्ता गीयत्थनिवारिया अणाइन्ना / चिच्चा मिच्छाभिनिवेससाहिगा सो उ मिच्छस्स गिहिदिसिबन्धो तह णो हवंत अवहरणमच्छरो गुणिसु / अववायपयालंबण पयारणं मुद्धधम्माणं सढयाए समाइन्नं एयं अन्नं च गीयपडिसिद्धं / तत्तं सज्जाणतबहुमाणा उ असग्गहो होइ सढयाइ पक्खसाहणजुत्ती वि असग्गहो मुणेयव्वो / जणरंजणत्थपसमो न होइ समत्तगमओ उ सम्मट्ठिी जीवो कम्मवसा विसयसंपउत्तो वि। मणसा विरत्तकामो ताण सरूवं विचिंतेइ आवायसुंदरा वि हु भाविभवासंगकारणत्तणओ। विसया सप्पुरिसाणं सेविजंता वि दुहजणया हा धी विलीणबीभस्सकुस्सणिज्जम्मि रमइ अंगम्मि। किमिकव्व एस जीवो दुहं पि सुखं ति मन्नतो . ता ताण कए दुक्खसयनिबंधणं भयइ बहुविहं जीवो। आरंभमह परिग्गहमओ वि बंधो वि पावाणं तो नरयवेयणाओ तिरियगईसंभवा अणेगाओ / ता जरियजंतुणो मज्जियाए पाणोवमा विसया जइ हुज्जइ गुणो विसयाण को वि तित्थयरचक्किबलदेवा / जुत्तत्तणं पि विसए चएउं अब्भुट्ठिया कहं णु विसयासासंदामियचित्तो विसएहिं विप्पउत्तो वि। परिभमइ कंडरीओ व्व नियमओ घोरसंसारे ता अलमिमेहि मज्झं अज्जं कल्लं च दे चइस्सामि / मुक्खसुहाओ किमन्नं परमत्थेणत्थि सुक्खं ति . . . . 207 // 16 // // 17 // // 18 // // 19 // // 20 // // 21 //