________________ एएसि जहासंभवमत्थोवणयं करिज्ज रासीणं / सब्भावओ अ जाणिज्ज ते अणंते जिणाभिहिए // 36 // // 2 // // 3 // // 4 // वसतिमार्गप्रकाशकश्रीमद्विनेश्वरसूरिकृतम् // पंचलींगीपगरणं // उवसम संवेगो वि य निव्वेओ तह य होइ अणुकंपा / / अत्थिक्कं चिय पंच वि हवंति सम्मत्तलिंगाई मिच्छाभिनिवेसस्स उ नायव्वो उवसमो इहं लिंगं // चारित्तमोहणीयं जेण कसाया समाइट्ठा चउवीससंतिकम्मी मिच्छाभावं न पाउणा इहरा // अणउदये वा सम्मं सासादणरूवं कहं हुज्जा ... ववहारहेउ लिङ्गं बारस तुरिए गुणम्मि उ कसाया / आइल्लाण.विसेसो न दुट्ठभासाइगम्मो उ पक्खचउम्मासवच्छरजावज्जीवाणुगामिरूवो उ॥ न खलु विसेसो अविरय तिरियगई पसंगाओ जावज्जीवमणंता मिच्छदिट्ठी कहं लभे सम्मत्तं / देसजइणो न कहवा मणुयाउ य बद्धजोगा उ अत्तत्तरुईरूवं मिच्छत्तस्स उ न तं अणंताणं / असदग्गहो तओ खलु मिच्छाभिनिवेसओ होइ तस्सुवसमो उ लिंगं सम्मत्तं गमइ जंतुणो नियमो। त्थीबन्धगा तओ एव महाबलो पीढमहापीढा इत्तो जमालिगुट्ठामाहिलमाई वि निण्हगां सव्वे / मिच्छाभिनिवेसाओ मिच्छदिट्ठी पसंता वि . // 5 // // 7 // // 8 // // 9 //