________________ सो भणति एव भणिए 'भीतो न वि ता अहं समत्थो मि / अप्पं च महं आउं बहू [य] सुयमंदरो सेसो' // 750 // 'मा भाहि नित्थरीहिसि अप्प[?य]तरएण वीर ! कालेणं / / मज्झ नियमो समत्तो पुच्छाहि दिवा य रत्तिं च' ... // 751 // सो सिक्खिउं पयत्तो ट्ठित्थो सुट्ठ दिट्ठिवायम्मि। / पुव्वक्खतोवसमियं पुव्वगतं पुवनिद्दिटुं . . // 752 // संपति एक्कारसमं पुव्वं अतिवयति वणदवो चेव / झत्ति तओ भगिणीतो दट्ठमणा वंदणनिमित्तं // 753 // जक्खा य जक्खदिण्णा भूया तह हवति भूयदिण्णा य। सेणा वेणा रेणा भगिणीतो थूलभद्दस्स // 754 // एया सत्त जणीओ बहुस्सुया नाण-चरणसंपण्णा / सगडालबालियातो भाउं अवलोइडं एंति // 755 // तो वंदिऊण पाए सुभद्दबाहुस्स दीहबाहुस्स / पुच्छंति 'भाउओ णे कत्थ गतो थूलभद्दो ?' त्ति // 756 // अह भणइ भद्दबाहू 'सो परियट्टेति सिवघरे अंतो। वच्चह तर्हि विदच्छिह सज्झाय-ज्झाणउज्जुत्तं' // 757 // इयरो वि य भगिणीओ दट्ठणं तत्थ थूलभद्दरिसी। चिंतइ गारवयाए 'सुयइड् िताव दाएमि' . || 758 // सो धवलवसभमेत्तो जातो विक्खिण्णकेसरजडालो। घणमुक्कससिसरिच्छो कुंजरकुलभीसणो सीहो // 759 // तं सीहं दट्ठणं भीयाओ सिवघरा विनिस्सरिया / भणितो य णाहिं [उ] गुरू 'एत्थ हु सीहो अतिगतो'त्ति // 760 // 'नत्थेत्थ कोइ सीहो, सो चेव य एस भाउओ तुब्भं / इड्ढीपत्तो जातो [तो] सुयइड्डेि पयंसेइ' . // 761 // 120