________________ संवेगगब्भसुपसत्थसत्थसवणं हि होइ धन्नाणं / सवणे वि धनतरगाण चेव तस्सासमापत्ती // 140 // जह तह संवेगरसो वन्निज्जइ तह तहेव धन्नाणं / भिज्जंति खित्तजलमिम्मयामकुंभव्व हिययाई // 141 // सारो वि य एसु च्चिय दीहरकालं पि चिन्नचरणस्स / जम्हा तं चिय कंडं जं विधइ लक्खमझे वि . // 142 // रूवे चक्खू पडिमा य देउले रसवईइ जह लवणं / तह परलोगविहीइ सारो संवेगरसफासों . // 143 // सुचिरं पि तवो तविउं चित्रं चरणं सुअं पि बहु पढिअं। जइ नो संवेगरसो ता तं तुसखंडणं सव्वं / // 144 // तह संवेगरसो जइ खणं पि न समुच्छलिज्ज दिवसंतो। ता विहलेण किमिमिणा बज्झाणुट्ठाणकटेणं? // 145 // पक्खंतो मासंतो छम्मासंतो वि वच्छरस्संतो। जस्स न हुज्जा तं जाण दूरभव्वं अभव्वं वा // 146 // एसो पुण संवेगो संवेगपरायणेहिं परिकहिओ। परमं भवभीरुत्तं अहवा मुक्खाभिकंखित्तं // 147 // संवेगभावियमई जंवेलं होइ संवरपविट्ठो। अग्गीव पवणसहिओ समूलजालं दहइ कम्म // 148 // जीवियजलम्मि झीणे सरीरसस्सम्मि परिब्भसंतम्मि। को वि हु नत्थि उवाओ तह वि जणो पावमायरइ // 149 // इट्ठजणं धणधन्नं विसया पंचंगवल्लहं देहं / इक्कपए मुत्तव्वं तहा वि दीहास जीवाणं / // 150 // RGO