________________ // 56 // // 57 // // 58 // // 59 // // 60 // // 61 // कसिणाहिबिलसमीवे बहुछिदं चारुचंदणदलेहिं / काउं गिहं तदंतो अ मालईकुसुमसयणिज्जे निदं जिगीससि तुमं जं सुहमेयं ति कट्ट हे हियय ! / अहिलससि विसयसंतं नीरागत्तं विमुत्तूणं हियय ! सकिलेसविहवेहिं सुहकए कामिएहिं किं मूढ ! / अप्पाणं संतोसे निवेसिउं होसु तं सुहिअं जणयंति किलेसं अज्जणम्मि मोहं सगज्जिआओ अ। थोवं परं च नासे पयइए च्चिय विभूईओ ता तासु कुगइगमणवत्तिणीसु रायग्गिचोरसज्जासु / हे चित्त ! तत्तचिंतणपुरस्सरं चयसु पडिबंधं इंदियगेज्मं जं किंचि कत्थई इत्थ अस्थि वत्थु न तं / थिरमह तत्थ वि जइ रमसि मण ! तुमं चेव ता मूढं इक्कं निययाणुभावा बीयं पुण जिणवरिंदवयणाओ / करिकलहकन्नपालीतरलतरत्तं खु पगईए संसारसमुत्थसमत्थवत्थुसत्थस्स मण'! मुणित्ताणं / मा पडिबंधं बंधसु खणमत्तं पि हु तुमं तत्थ तह अत्थऽज्जणरक्खणवयणकयं वेयणं न पावेसि / मण ! परमनिव्वुई ते भवे वि संतोसओ होही संतोसामयरससिंचमाणमाणससुहं सया जं ते। तमसंतुढे कत्तो ? इओ तओ चिंतणाऽऽसत्ते तमुदारत्तं तं चिअ गुरुत्तणं तह तमेव सोहग्गं / सा कित्ती तं च सुहं संतोसपरं तुमं मण ! जं दीणत्तमेसि अत्थी लद्धत्थं गव्वमपरितोसं च / नट्ठधणं पुण सोगं सुहेण चिट्ठसु मण ! निरासं 283 // 62 // // 63 // // 64 // // 65 // // 66 // // 67 //