________________ // 120 // अट्ठा वि हु भज्जाओ धम्माहम्मेण हुँति एयाओ। एवं सुणेइ सव्वो धम्माहम्मं न तं सरइ / जइ तं सरेज्ज पायं पुणो अहम्मं न कोइ सेविज्जा। पुव्वभवअसरणाओ बहुओ तेणं अहम्मपरो इय रयणसिंहसूरी वुत्तूणं काऊ पाणमयमेयं / आणंदामयकुंडे विलसंतो निव्वुई लहइ // 121 // // 122 // - | // 1 // // 2 // पू.आ.श्रीरत्नसिंहसूरिविरचिता ॥संवेगरंगमाला // भावम्मि समाही पुण एगंतेणेव चित्तविजयाओ। चित्तविजओ अ सम्मं रागद्दोसाण परिहरणा तप्परिहारो असुहेयरेसु सद्दाइएसु विसएसु / पत्तेसु वि चित्तेसु वि अभिसंगपओससंचागो तम्हा कमग्गलग्गं विवेगरज्जूइ चडुलतुरगं व / सुदढं संजमिऊणं माणसमुस्सिंखलपयारं // 3 // जइयव्वं सव्वेणवि सुहत्थिणा सुपुरिसेण निच्चं पि। सम्मं समाहिकरणे विसेसओ धम्मनिरएणं // 4 // असमाहीओ दुक्खं दुहिणो उण अट्टमेव न उ धम्मो / धम्मविहीणस्स पुणो दूरे आराहणामग्गो // 5 // मुत्तुं समाहिमेवं असेससेसंगसंगया वि जओ। . सव्वा सुहसामग्गी दावग्गी चेव पुरिसस्स जं वा तं वाऽसिस्स वि जेण व केणावि पाउअस्सावि। जत्थ व कत्थ व वासिस्स जम्मि कम्मि वि अहव काले // 7 // // 6 //