________________ // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // // 11 // संवेगो मोक्खमई, निव्वेओ भवविरत्तया होइ / दुत्थियविसया उ दया, अत्थिकं तत्तविसयंति भूयत्थसद्दहाणा, अत्थिकं नो विसिस्सए जेण / तो कहमेयाण मओ, नणु लिंगीलिंगभावो त्ति आयपरिणामभेओ, सम्मत्तं तस्स होइ कज्जं जं / भूयत्थसद्दहाणं, तो उवयारेण तं वुत्तं . एवं च सम्मलिंगं, अत्थिक्कं नत्थि ता विरोहोऽत्थ / भूयत्थसदहाणं पि, भण्णए जेण आयगुणो खयउवसमाइएहिं, दंसणमोहस्स जीवपरिणामो / जो होइ सुहसरूवो, सो सम्मत्तं विणिद्दिट्ठो एगविहं सम्मरुई, निस्संग्गभिगमेहिं तं भवे दुविहं / तिविहं तं खइयाई, अहवा वि हु कारगाईयं सम्मत्तमीसमिच्छत्त-कम्मखइओ भणंति तं खइयं / मिच्छत्तखओवसमा खाओवसमं ववइसंति . मिच्छत्तस्स उवसमा, ओवसमं तं भणंति समयण्णू / तं उवसमसेढीए, आइमसम्मत्तलाभे वा विहियाणुट्ठाणं पुण, कारगमिह रोयगं तु सद्दहणं / मिच्छदिट्ठी दीवइ, जं तत्ते दीवगं तं तु खइयाईसासायण-सहियं तं चउविहं तु विनेयं / तं सम्मत्तब्भंसे, मिच्छत्तअपत्तिरूवं तु वेययसंजुत्तं पुण, एयं चिय पंचहा विणिद्दिटुं / सम्मत्तचरमपोग्गल-वेयणकाले उ तं होइ एयं चिय पंचविहं, निस्सग्गहिगमभेयओ दसहा / अहवा निस्सग्गरुई, इच्चाइ जमागमे भणियं // 12 // . // 13 // // 14 // // 15 // // 16 // // 17 //