________________ // 1 // // 2 // . // 3 // // 4 // पू.श्री. जिनचन्द्रगणिविरचितम् // नवतत्त्वम् // सम्मं च मोक्खबीयं, तं पुण भूयत्थसद्दहणरूवं / पसमाइलिङ्गगम्भ, सुहायपरिणामरूवं तु एगविहदुविहतिविहं, चउहा पंचविहदसविहं सम्मं / मोक्खतरुबीयभूयं, संपइराया व धारेज्जा जीवाइनवपयत्थे, जो जाणइ तस्स होइ सम्मत्तं / भावेण सद्दहंते, अयाणमाणे वि सम्मत्तं जीवाजीवा पुत्रं, पावासवसंवरो य निज्जरणं / बंधो मोक्खो य तहा, नवतत्ता होंति नायव्वा सुहमा बायर बेइंदिया य तेइंदिया य चउरिंदी। अस्सनी सन्नी खलु, चोद्दस पज्जत्तपज्जत्ता धम्माधम्मागासा, तियतियभेया तहेव अद्धा य। . खंधा देसपएसा, परमाणु अजीव चउदसहा . सायं उच्चागोयं, सत्तत्तीसं तु नामपगईओ। तिन्नि य आऊणि तहा, बायालं पुनपगईओ नगणंतरायदसगं, दंसण नव मोहपयइछव्वीसं / नामस्स चउत्तीसं, तिण्हं एकेक पावाओ इंदियकसायअव्वयकिरिया पणचउरपंचपणवीसा / जोगा तिण्णेव भवे, बायालं आसवो होइ समिई गुत्ती धम्मोऽणुप्पेह परीसहा चरित्तं च / सत्तावण्णं भेया, पणतियभेयाइ संवरणे अणसणभेयाइ तवो, बारसहा तेण निज्जस होइ / कणगावलिभेया वा, अहव तवोऽणेगहा भणिओ // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // // 11 // 20