________________ सव्वेसि संठाणं, समचउरंसं महग्घमाहप्पं / उत्तरविउव्वियं पुण, नाणाविहरूवसंठाणं // 331 // गंधेण सुरहिगंधा, सुहफासा विम्हयं जणंतहियं / ... सिंबलिरूयब्भहिया, अणोवमा अरयलंबिच्छा. . // 332 // जइ जस्सयराइँ ठिदी, तदि मासद्धेहि तस्स उस्सासो। ... तदि वाससहस्सेहि य, आहारो उवरिमसुराणं / // 333 // लेस्सा दिट्ठी नाणे, उवओगे चेव होइ जोगे य / तत्तो य समुग्घाओ, विउव्वणा साय इड्डी य // 334 // दोसुं तु तेउलेसा, तीसु य कप्पेसु पम्हलेसागा। . तेण पर सुक्कलेसा, देवा सव्वे वि विण्णेया // 335 // मिच्छा सम्मामिच्छा, सम्मट्ठिी, य तिण्णि दिट्ठीओ। देवेसु मुणेयव्वा, नाणं तु अओ परं वोच्छं // 336 // नाणी अन्नाणी वि य, सव्वे वि सुरा उ जाव गेवेज्जा / उवओगो पुण दुविहो, सागारो चेवऽनागारो // 337 // तिविहो य होइ जोगो, मणवइकारण जो (सो) मुणेयव्वो। तिण्णेव य नाणाई, अणुत्तरविमाणवासीणं // 338 // सव्वेसु जहन्नोही, अंगुलभागो भवे असंखेज्जो।' उड्टुं सगा विमाणा, तिरियं दीवोदधिमसंखा // 339 // सक्कीसाणा पढमं, दोच्चं च सणंकुमारमाहिंदा / तच्चं च बंभलंतग, सुक्कसहस्सारग चउत्थीं // 340 // आणयपाणयकप्पे, देवा पासंति पंचमि पुढवि / तं चेव आरणच्चुय, ओहीनाणेण पासंति . // 341 // छट्टि हेट्ठिममज्झिमगेवेज्जा सत्तमि च उवरिल्ला / संभिन्नलोगनालि, पासंति अणुत्तरा देवा // 342 // 304