________________ // 44 // // 45 // // .46 // // 47 // // 48 // // 49 // णिरयग्गे पंचूणे, अट्ठविभत्तम्मि रूवसहियम्मि। .. हेट्ठा वियाण पयरं, तं पि य रूवूणयं सोहे .. पंचेव हवइ आई, अट्ठेव य उत्तरं मुणेयव्वं / अउणापण्णं गच्छो, णरयावलि त(इ)त्तिया चेव गच्छुत्तरसंवग्गे, उत्तरहीणम्मि पक्खिवेयाइं / अंतिमधनमाइजुयं, गच्छद्धगुणं तु सव्वधणं . जो गच्छु न देअद्धं, तस्स उ रासीएँ गिव्हिऊणद्धं / गच्छगुणं सव्वधणं, एवं सत्तण्ह वि करेज्जा गच्छगुणमुत्तरं उत्तरूणियं आइसहियमंतधणं / आदिजुयद्धं मज्झिमधणं तु गच्छाहयं सव्वं सगपयरा रूवूणा, अट्ठगुणा सोहियाहि समुहाओ। जं तत्थ सुद्धसेसं, इच्छियपयरस्स सा भूमी तिण्णि सय अउणनउया, दो तेणउया य होंति पढमाए / दो सय पंचासीया, पंचोत्तर दोण्णि बितियाए सत्ताणउयं च सयं, तेत्तीस सयं सयं च पणुवीसं / सत्तत्तरि अउणत्तरि, सत्तत्तीसा य उणतीसा तेरस मुहभूमिओ, दो दो रयणादिछट्टिअंताणं / / सेटिंदयाण करणं, सेटिंदयवज्जिया सेसा पत्थडतेरे पढमिल्लुयम्मि भूमी उ सा भवे णियमा / माघवतीते पणगं, मुहं पुणो तं वियाणाहि मुहभूमिसमासद्धं, अवलंबगसंगुणं तु सव्वग्गं / पुढवीए पुढवीए, णिरयाणं एस संखेवो . भूमिमुहाणेतेसि, समाससद्देण मेलओ होइ / ' मिलियस्सद्धं उणपण्णोलंबगुणं तु सव्वग्गं . // 50 // // 51 // // 52 // // 53 // // 54 // // 55 // 280.