________________ // 434 // सव्वुक्कोसरसो जो मूलविभागस्सणंतिमो भागो / सव्वघाईण दिज्जइ सो इयरो देसघाईणं उक्कोसरसस्सद्धं मिच्छे अद्धं तु इयरघाईणं / सञ्जलणनोकसाया सेसं अद्धद्धयं लेंति // 435 // जीवस्सऽज्झवसाया सुभासुभाऽसंखलोगपरिमाणा / सव्वजियाणन्तगुणा एक्कक्के होंति भावाणू // 436 // एक्कज्झवसायसमज्जियस्स दलियस्स किं रसो तुल्लो ? / न हु होंति ऽणन्तभेया साहिज्जन्ते निसामेह . // 437 // सव्वष्परसे गेण्हइजे बहवे तेहिं वग्गणा पढमा / . अविभागुत्तरिएहिं अन्नाओ विसेसहीणेहिं // 438 // दव्वेहिं वग्गणाओ सिद्धाणमणन्तभागतुल्लाओ। एयं पढमं फड़े अओं परं नत्थि रूवहिया // 439 // सव्वजियाणंतगुणा पलिभागा लंघिउं पुणो अन्ना / एवं हवंति फड्डा सिद्धाणमणंतभागसमा .. एवं पढमं ठाणं एवमसंखेज्जलोगठाणाणं / / समवग्गणाणि फड्डाणि तेसिं तुल्लाणि विवराणि // 441 // ठाणाणं परिवुड्डी छट्ठाणकमेण तं गयं पुब्विं / भागो गुणो य कीरति जहुत्तरं एत्थ ठाणाणं // 442 // छट्ठाणगअवसाणे अन्नं छट्ठाणयं पुणो अन्नं / एवमसंखा लोगा छट्ठाणाणं मुणेयव्वा // 443 // सव्वासि वुड्डीणं कंडगमेत्ता अणंतरा वुड्डी / एगंतरा उ वुड्डी वग्गो कंडस्स कंडं च कंडं कंडस्स घणो वग्गो दुगुणो दुगंतराए उ। कंडस्स वग्गवग्गो घणवग्गा तिगुणिआ कंडं // 445 // // 440 // // 444 // 180.