________________ // 198 / // 199 // // 200 // // 201 / / . // 202 // सव्वगुणठाणगेसुं, विसेसहेऊण एत्तिया संखा / छायाललक्ख बासीई, सहस्स सय सत्तसयरी यः सोलसठारस हेऊ, जहन्न उक्कोसया असन्नीणं / चोद्दसट्ठारसऽपज्जस्स सन्निणो सन्निगुणगहिओ मिच्छत्तं एगं चिय, छक्कायवहो तिजोगसन्निम्मि / इंदियसंखा सुगमा, असन्निविगलेंसु दो जोगा . एवं च अपज्जाणं, बायरसुहुमाण पज्जयाण पुणो। तिण्णेक्ककायजोगा, सण्णिअपज्जे गुणा तिन्नि उरलेण तिन्नि छण्हं, सरीरपज्जत्तयाण मिच्छाणं / . सविउव्वेणं सन्निस्स, सम्ममिच्छस्स वा पंच सोलस मिच्छनिमित्ता, बझहि पणतीस अविरईए य / सेसा उ कसाएहिं, जोगेहि य सायवेयंणीयं तित्थयराहाराणं, बंधे सम्मत्तसंजमा हेऊ / पयडीपएसबंधा, जोगेहिं कसायओ इयरे .. खुप्पिवासुण्हसीयाणि, सेज्जा रोगो वहो मलो। तणफासो चरीया य, दंसेक्कार सजोगिसु वेयणीयभवा एए, पन्नानाणा उ आइमे / अट्ठमम्मि अलाभोत्था, छउमत्थेसु चोद्दस निसेज्जा जायणाऽऽकोसो, अरई इत्थिनग्गया / सक्कारो दंसणं मोहा, बावीसा चेव रागिसु // 203 // // 204 // // 205 // // 206 // // 207 // ॥५॥बंधविधि द्वार बद्धस्सुदओ उदए, उदीरणा तदवसेसयं संतं / तम्हा बंधविहाणे, भन्नते इइ भणियव्वं .. // 208 // 170