________________ // 4 // अज्ञातकर्तृकः ॥बन्धस्वामित्वाख्यः तृतीयः प्राचीनकर्मग्रन्थः॥ नमिऊण वद्धमाणं, गइयाईठाणदेसयं सिद्धं / गइयाइएसु वोच्छं, बंधस्सामित्तमोघेणं // 1 // गइ इंदिए य काए, जोए वेए कसाय नाणे य / संजम दंसण लेसा, भव सम्मे सण्णि आहारे // 2 // गुणठाणा सुरनिरए, चउ पण तिरिएसु चउदस नरेसु / जीवट्ठाणा तिरिए, चउदस सेसेसु दुग दुगं जाण // 3 // निरयतिगं मिच्छत्तं, नपुंस इगविगलजाइआयावं / छेवट्ठ थावरचऊ, हुंडं चिय मिच्छदिट्ठिम्मि थीणतिगित्थी अण तिरितिग कुविहगई य नीयमुज्जोयं / दुभगतिग पणुवीसा, मज्झिमसंठाणसंघयणा थावरचउ जाई चउ, विउवाहारदुग सुरनिरतिगाणि / आयवजुयाहिँ ऊणं, एगहिवसयं नरय बंधे . तित्थोणं सय मिच्छा, साणा नपुहंडछेयमिच्छोणं / मीसा नराउपणुवीसोणं सम्मा नराउतित्थजुयं पंकाइसु तित्थोणं, नराउहीणं सयं तु सत्तमिए / मणुदुगउच्चेहिँ विणा, मिच्छा बंधंति छण्णउई हुंडाईचउरहियं, साणा तिरियाउणा य इगनउई। इगुणपणुवीसरहिया, सनरदुगुच्चा सयरि मीसे तित्थाहारदुगुणा, तिरिया बंधंति सव्वपयडीओ। पज्जत्ता तह मिच्छा, साणा उण सोलसविहीणा // 10 // नरतिगसुंराउउसभं, उरलदुगं मोत्तु पण्णवीसं च / अणुहत्तरं तु मीसा, सुराउणा सत्तरी सम्मा // 11 // 131 // 7 // // 8 //