________________ // 20 // // 21 // // 22 // // 23 // // 24 // साहूण जे वमाणं कीरंतं पाविएहिं न सहति / आराहगा वि ते सासणस्स धणदेवसिट्ठि व्व अद्दिट्ठसमयसारा जिणवयणं अन्नहा वियारेत्ता / धवलु व्व कुगइभायणमसइं जायंति इह जीवा उच्छाहिति कयत्था गिहिणो वि हु जिणवरिंदभणियम्मि / धम्मम्मि साहुसावयजणं तु पज्जुन्नराई व्व ईसीसिमभिमुहं पि हु केई पाडिति दीहसंसारे। मुणिचंदु व्व अपरिणयजिणदेसणअविहिकरणाओ जयसेणसूरिणो इव अन्ने पावंति उन्नइं परमं / जिणसासणमविगप्पं दुवियड्ढजणाण वि कहित्ता ईसीसिमुज्जमंतं दढयरमुच्छाहिऊण जिणधम्मे। . साहिति निययमटुं सुरिंददत्तु व्व जइवसभो जिणसमयपसिद्धाइं पायं चरियाइं हंदि एयाइं। . भवियाणऽणुग्गहट्ठा काई वि परिकप्पियाई पि सक्किरियाएँ पवित्तिनिबंधणं जं च वनणमिणं तु / अक्किरियाए निवित्तीफलं तु जं भव्वसत्ताणं समयाविरुद्धवयणं संवेगकरं न दुट्ठमियरं पि / तप्फलपसाहगत्ता तं पि हु संमयप्पसिद्धं तु सम्मत्ताइगुणाणं लाभो जइ हुज्ज कित्तियाणं पि / ता हुज्ज मे पयासो सकयत्थो जयउ सुयदेवी सिरिवद्धमाणमुणिवइसीसेण विरइओ समासेण / एस कहाणयकोसो जिणेसरायरियनामेण // 25 // // 26 // // 27 // // 28 // // 29 // // 30 // . .. 349