________________ // 23 // // 24 // // 25 // // 26 // // 27 // // 28 // काउं गुणरयणतवं अट्ठ वि अक्खोभसागरप्पमुहा। वहिसुया संपत्ता सिद्धि एक्कारसंगधरा तं वंदे रहनेमि चउरो वच्छरसयाइं जस्स गिहे जो वरिसं छउमत्थो पंचसए केवली जाओ जालिमयालिउवयालि पुरिससेणे य वारिसेणे य। . पज्जुन्नसंबअणिरुद्धसच्चनेमी.य दढनेमी पन्नासं पन्नासं भज्जाओ चंइय बारसंगधरा। सोलससमपरियाया सिद्धा सत्तुंजए दस वि बत्तीसपुरंधिवई देवइपुत्ता अणीयजसपमुहा / छप्पि य नेमिसुसीसा चउदसपुव्वी गया सिद्धि वंदामि नेमिसीसं वयदिणगहिएगराइवरपडिमं / सोमिलकयउवसग्गं गयसुकुमालं सिवं पत्तं / जो गेविज्जाउ चुओ आयाओ जउकुले विसालम्मि। तं देवईअवच्चं गयसुकुमालं नमंसामि जो वासुदेवपुरओ पसंसिओ दुक्करं करेइ त्ति। सिरिनेमिजिणवरेणं तं ढंढणरिसिं नमसामि इब्भकुलबालियाओ सुपरिचत्ताओ जेण बत्तीसं। जस्स य निक्खमणमहं दसारकुलनंदणो कासी जो पुरिससहस्सजुओ पव्वइओ नेमिपायमूलम्मि। सो थावच्चापुत्तो चउदसपुव्वी सिवं पत्तो सहस्सजुओ तस्सीसो चउदसपुव्वी सुओगओ सिद्धि / इक्कारसंगिसुयसीससेलओ तह सपंचसओ जो य परक्कमइ तवं छिनं लूहं च देहमगणंतो। .. सिद्ध विहुयरयमलं सेलगपुत्तं तयं वंदे // प्र०५॥ . // 29 // // 30 // // 31 // // 32 // // प्र० 6 // 218