________________ // 63 // // 64 // // 65 // // 66 // // 67 // // 68 // ये धर्मसमये मूढाः, प्रमादे प्रेम कुर्वते / ते विषीदन्ति निर्दैवादृष्टनष्टधना इव यः शत्रुः स्वीयमित्रेषु, यो मित्रं स्वीयशत्रुषु / प्रमादेन समं तेन, वरं वैरं न सङ्गतिः स्वधर्मजीवितोच्छेदादिहामुत्र च दुःखदम् / प्रमादमुद्यमास्त्रेण, धीरो हन्ति महारिपुम् प्रमादेन मनुष्याणां, न लक्ष्मीन सरस्वती। न कीर्तिः सुगतिर्न स्यात्, प्राज्ञस्तेनोद्यमी भवेत् यथा सरोवरेष्वापः प्रासादे प्रतिमा यथा। . यथा कनीनिका नेत्रे, धर्मे श्रद्धा तथा मता विना गन्धं यथा पुष्पं, विना जीवं यथा वपुः / विना दीप्तिं यथा रत्नं, धर्मः श्रद्धां विना तथा सकला सुलभा सम्पत्, सकला सुलभा कला। सकला सुलभा विद्या, मतिर्धर्मेऽतिदुर्लभा यथा नीत्या नृपो मत्या, मन्त्री गत्या तुरङ्गमः / धृत्या व्रती तथा धर्मो, श्रद्धया सर्वसिद्धये निश्चिनोति फलं धर्मः सेव्यमानः सनिश्चयम् / संदेग्धि फलमाराध्यमानोऽयं निश्चयं विना दानादिदेवपूजादि-दयाद्यावश्यकादिकम् / कुर्वन् सनियमं पुण्य-कर्म तत्फलभाग् भवेत् श्रीवीरवाक्यतो मुक्त्वा, संशयं विशदाशया। आराध्य विधिना धर्म, जयन्ती मुक्तिमासदत् / सम्यक्त्वेन विना धर्मो, विनाऽऽलोचनया तपः। कल्पतेऽल्पफलायातः, प्रथमं तद् द्वयं श्रयेत् . // 69 // // 70 // // 71 // // 72 // // 73 // // 74 // 54