________________ // 27 // // 28 // // 29 // // 30 // // 31 // // 32 // सुरासुरनराधीश-सम्पदो वशवर्तिनी / कुर्वते हेलया तैर्यैः, सेव्यते धर्मवर्तिनी लक्ष्मी: लक्षविपक्षाणां, क्षयोऽक्षुण्णा मृगेक्षणाः / रणः सल्लक्षणः पक्षो, दक्षत्वं पुण्यसाक्षिणः स्माभोगाः समायोगाः, प्रियैर्भोगा अभङ्गुराः। . रोगाभावा अनुढेगा, पुण्योद्योगानुगा अमी ऐश्वयं शौर्यमौदार्य, गाम्भीर्यं वर्यवीर्यता / चातुर्य कार्यधुर्यत्वं, पुण्यप्राभाव्यजा गुणाः प्रभा प्रभुत्वं प्रतिभा, प्रमदाः प्रमदप्रदाः / प्रत्यनीकप्रमाथित्वं, प्राणिः प्राप्नोति पुण्यतः तेजस्वित्वं यशस्वित्वं रूपस्वित्वं विदग्धता / सर्वकामाऽवाप्तिमत्त्वं, पुण्यात्संपद्यते सदा. दीर्घमायुः स्थिरा लक्ष्मीः सुभगत्वमरोगता / सद्बुद्धिरथवा श्लाघ्या, जायते सुकृतोदयात् जन्ममृत्युजराचौरै-र्भवारण्यं भयङ्करम् / लक्यन्ति गुणानर्थ्य-धर्मकर्मपरा नराः रोगारिचौरनीयग्निगजसिंहभुजङ्गमाः / प्रेतवेतालभूताद्या, बाधयन्ति न धार्मिकान् पुष्पं सांसारिकं सौख्यं, छाया कीर्तेरतुच्छता / / फलं सिद्धिपदं वृद्धिमीयुषो धर्मशाखिनः धर्मकल्पद्रुमच्छायामाश्रयध्वं बुधा यथा / पापतापा विशीर्यन्ते, पूर्यन्ते वाञ्छितानि च सेव्यः श्रीधर्मजीमूतो, ध्रुवं श्रावकचातकैः / कर्माष्टकाष्ठमसौस्थ्यं, दुःखं दैन्यं छिनत्ति यः - 51 // 33 // // 34 // // 35 // // 36 // // 37 // // 38 //