________________ // 151 // // 152 // // 153 // // 154 // // 155 // // 156 // ततो द्विगुणद्विगुणविष्कम्भाश्च यथोत्तरम् / विदेहान्ता वर्षधराचल-वर्षा भवन्ति तु उत्तरे वर्षधराद्रि-वर्षास्तुल्यास्तु दक्षिणैः / वर्षधराद्रि-वर्षाणां, प्रमाणमिदमेव हि निषधानेरुत्तरतो, मेरोर्दक्षिणतोऽपि च / विद्युत्प्रभ-सौमनसौ, गिरी पश्चिम-पूर्वको गजदन्ताकृती मूर्जा, स्तोकादस्पृष्टमेरुको / अनयोरन्तरे देवकुरवो भोगभूमयः तद्विष्कम्भो योजनानामेकादश सहस्रकाः / द्विचत्वारिंशदधिका, योजनाष्टशती तथा तत्र च शीतोदाभिन्नहूदपञ्चकपार्श्वतः / स्वर्णशैला दश दश, ते मिथो मीलनाच्छतम् तत्र नद्याः शीतोदायाः, पूर्वापरतटस्थितौ / शैलौ विचित्रकूटश्च, चित्रकूटश्च नामतः तयोः सहस्रमुत्सेधे, योजनानामधोऽपि च / . . तावानेव हि विस्तारस्तदर्धं चोर्ध्वविस्तृतौ मेरोरुत्तरतो नीलगिरेर्दक्षिणतो गिरी / गजदन्ताकृती गन्धमादनो माल्यवानपि तयोरन्तः शीताभिन्नहदपञ्चकपार्श्वगैः / / स्वर्णशैलैः शतेनाऽतिरम्याः कुरव उत्तराः तेषु नद्याश्च शीतायास्तटयोर्यमकाभिधौ / सौवर्णी विचित्रकूट-चित्रकूटसमौ गिरी देवोत्तरकुरुभ्यः प्राक्, प्राग्विदेहाः स्मृताश्च ते / पश्चिमेऽपरविदेहा, मिथः क्षेत्रान्तरोपमाः 241 // 157 // // 158 // // 159 // // 160 // // 161 // // 162 //