________________ // 87 // गुर्वनुज्ञोपधायोगो वृत्त्युपायसमर्थनम्। ग्लानौषधादिदृष्टान्तात्, त्यागो गुरुनिवेदनम् // 84 // प्रश्नः साधुक्रियाख्यान परीक्षा कण्ठतोऽर्पणम् / सामायिकादिसूत्रस्य, चैत्यनुत्यादि तद्विधिः // 85 // सापेक्षो निरपेक्षश्च, यतिधर्मो द्विधा मतः / सापेक्षस्तत्र शिक्षायै, गुर्वन्तेवासिताऽन्वहम् // 86 // विशुद्धमुपधानेन, प्राप्तं कालक्रमेण च / योग्याय गुरुणा सूत्रं, सम्यग्देयं महात्मना औधिकी दशधाख्या च, तथा पदविभागयुक् / सामाचारी विधेत्युक्ता, तस्याः सम्यक् प्रपालनम् // 88 // प्रतिलेखनिका 1 पिण्डो 2 पध्य 3 नायतनानि 4 च / प्रतिसेवा 5 ऽऽलोचने 7 च, शुद्धि 7 श्चेत्यौघिकी मता // 89 // निशान्त्ययामे जागर्या, गुरोश्चावश्यकक्षणे। . उत्सर्गो देवगुर्वादिनतिः स्वाध्यायनिष्ठता // 90 // काले च कालग्रहणं, ततश्चावश्यकक्रिया। द्राक् प्रत्युपेक्षणा सम्यग्, स्वाध्यायश्चाद्यपौरुषीम् // 91 // प्रतिलिख्य ततः पात्राण्यर्थस्य श्रवणं गुरोः / एवं द्वितीयपौरुष्यां, पूर्णायां चैत्यवन्दनम् // 92 // कृत्वोपयोगं निर्दोषभिक्षार्थमटनं तदा। . आगत्यालोचनं चैत्यवन्दनादिविधिस्ततः // 93 // गुर्वादिच्छन्दनापूर्व, विधिना भोजनक्रिया। यतनापात्रशुद्धौ च, पुनश्चैत्यनमस्क्रिया // 94 // गुरुवन्दनपूर्वं च प्रत्याख्यानस्य कारिता / आवश्यिक्या बहिर्गत्वा स्थण्डिले विविसर्जनम् // 95 // . 11