________________ // 213 // // 214 // // 215 // // 216 // // 217 // .. // 218 // प्रतिक्षणं गलत्यायुर्नीरक्षिप्तामकुम्भवत् / दुर्वाक्यं हास्यतोऽप्युक्तं, दुर्विपाकं प्रदर्शयेत् . नृपस्यामरदत्तस्य, मित्राणन्दस्य मन्त्रिणः / राजतुक् रत्नमञ्जर्या, यथोक्तं पूर्वजन्मनि बन्धाद्यास्तीव्रविद्वेषाभावेऽपि विहिताः सकृत् / वधाद्यन्तकृतां पुंसां, ददतेऽनेकजन्मसु शुभस्थाने प्रयुञ्जानैर्मनोवाक्कायमङ्गिभिः। . अद्यतेऽनुक्षणं पुण्यमशुभं तु विपर्यये सागरोपममेकं यैरायुर्देवेषु बध्यते। . पल्यकोटिसहस्राणि, ते बध्नन्ति दिने दिने पल्योपमस्य सङ्ख्यातं, भागं बध्नन्ति ये दिवि / वर्षकोटीरसङ्ख्यातास्तेऽर्जयन्त्यन्वहं नराः दुर्गतावप्ययं न्यायो, ज्ञात्वैतत् स्वहितैषिणा। धर्मकृत्येषु चित्रेषु, सर्वदोद्यम्यमादरात् धर्मबाधकदोषाणां, विपक्षेषु विचार्य ये। प्रवर्तन्तेऽन्वहं पुण्यं, तानलंकुरुते सदा शुद्धधर्मोपदेष्टारः शुद्धभैक्षोपजीविनः / धनिनिःस्वसमस्वान्ता, महाव्रतपरिष्कृताः कालाद्यपेक्षानुष्ठानाः, संविग्ना: करुणापराः / समस्तश्रुततत्त्वज्ञाः, षट्त्रिंशद्गुणभूषिताः प्रभावयन्तस्तीर्थेशं, वज्रस्वामीव शासनम् / प्रबोधयंतो भव्यौघान्, सदोद्यतविहारिणः गुरवः स्वाङ्घ्रिपद्माभ्यां, यं देशं पावयन्त्यही / धन्यास्तद्वासिनो लोका, गुरुवाक्यामृतोक्षिताः / // 219 // // 220 // // 221 // // 222 // // 223 // // 224 // 180