________________ पुरिसा संसारिजिया, नर-नारय-तिरिय-देवगइवासी / सव्वेसि तेसि पुज्जा, हवंति पुरिसोत्तमा तम्हा // 304 // बीहंति न चेव जओ, उवसग्ग-परीसहाण. घोराणं / .. विअरंति असंकमणा, भन्नति तओ पुरिससीहा // 305 // पुरिसवरपुंडरीया, होति जिणा पुंडरीयसाहम्मा / तं पुण वियारियव्वं, एवं सत्थत्थकुसलेहिं // 306 // . पंके जायं सलिलेण बड्डियं उवरि संठियं तेसि / एगेणावि न छुप्पइ, जह पवरं पुंडरीयं तं // 307 / / एवं खलु तित्थयरा, जाया संसारपंकमज्झम्मि / पंचविहकामभोगोदएण संपाविया विद्धिं // 308 // छुप्पंति न एक्केण वि, संपत्ता वीयरागपयमउलं / सासाइ सुरहिगंधं, वहति वा पुंडरीयं व // 309 // वटुंति य उवयारे, नर-तिरियाणं निरीहपरिणामा / धारिजंति व सिरसा, नरा-ऽमरीसेहिं नमिरेहिं .. // 310 // पुरीसा वि जिणा एवं, पत्ता वरपुंडरीयउवमाणं / जह गंधहत्थिउवमा, पत्ता तह संपयं वोच्छं // 311 // जह गंधहत्थिगंधं, असहंता कुंजरा पलायति / ढुक्कंति नेव समरे, एगस्स वि ते अणेगा वि // 312 // इय जत्थ जिणो विहरइ, देसे जोयणसयाउ तत्तो उ।। रोगो-वसग्गकरिणो, सव्वे दूरेण नासंति // 313 // पुव्वुप्पन्ना रोगा, पसमंती ईति-वइर-मारीओ / अइबुट्ठि अणावुट्ठी, न होइ दुब्भिक्ख-डमरं वा // 314 // पुरिसवरगंधहत्थीण ताण सोंडीरभावकलियाणं / / होउ पणामो एसो, चउप्पया संपया एसा * // 315 //