________________ meaniरण, परमपराजुत्तण . // 15 // इय कयउवहातवो, नवकारं इरियचियवंदणयं / समवसरणच्चवंदण-वायणपुव्वं गहेसु सुत्तत्थं // 12 // तं सरवंजणमत्ताहिं, गारवीसामठणपरिसुद्धं / संदेहे वीमंसिय, पुच्छिय निस्संकियं कुज्जा // 13 // तयणु तिहिकरणहोरा-मुहुत्तनक्ख़त्तजोगलग्गम्मि / तह चंदबले तारा-बलेइ अइसोहणे संते . // 14 // * भत्तिभरनिब्भरेणं; हरिसवसुल्लसियबहुलपुलएणं / सद्धासंवेगपरेण, परमवेरग्गजुत्तेणं ' * विगलियघणरागदोस-मोहमिच्छत्तमलकलंकेणं / ' उल्लसिरविउलनिम्मल-अज्झवसाएण सड्डेणं // 16 // आणेऊणं गुरुणो, संघं च चउव्विहं च नियगेहे / देवालयपडिमाए, कयपूयाए पुरो ठाउं // 17 // * जिणनाहकहियगंभीर-समयकुसलेण सुद्धचित्तेणं / सह बहुगणेण .गुरुणा, संघेणं तह सबंधूहि // 18 // * निअसिरिरइयकरकमल-मउलिणा जंतुरहियओगासे / निस्संकं सुत्तत्थं, पए पए भावयंतेणं // 19 // * तिहुयणगुरुजिणपडिमा-विणिवेसियनयणमाणसेहि तहा। " वंदियजिणबिंबेणं, धन्नो हं मन्त्रमाणेणं // 20 // तो उववेसिय स गुरू, साहू संघं च नम वि भत्तीए / तदुचियसिचयाईहिं, पूए वि गुरुं सपरिवारं // 21 // अह कच्चूरियचंदण-कुंकुमतंबोलतोडराईहिं / . धोयत्तिकंचुयाईहि य महिए सव्वसंघम्मि // 22 // तो गरुयपबंधेणं, कायव्वा देसणा गुरूहि तया / / अक्खेवणि विक्खेवणि, संवेय निव्वेयणी चउहाँ / // 23 // 335