________________ श्री तिलकाचार्यविरचितसमाचारीत उद्धृतः // उपधानविधिः // पढम दुइ उवहाणे, दुवालसं अंबिलट्ठ अट्ठमगं / उववासतिगं अंबिल-बत्तीसा तइयउवहाणे // 1 // तुरिए चउत्थमंबिल-तिगं तहा पंचमे चउत्थतिगं / पणवीसं अंबिलाणि य, चउत्थ पंचंबिला छठे // 2 // वज्जंतो वावारं, विगहाओ अट्टरुद्दज्झाणे य / उवहाणमवीसामं, कुणइ अहोरत्त पोसहिओ अह सो हविज्ज बालो, वुड्डो वा तरुणओ वि हु असत्तो / तो उवहाणपमाणं, पूरिज्जा आयसत्तीए // 4 // नवकारसहियएहिं, पणयालीसाइं होइ उववासो।। पोरसि चउवीसाए, वीसाए सड्डपहरेहिं .. सोलस बारस अट्ठहि, दुतिचउआहारपूरउड्डेहिं / . दसहिं तिहारावड्डेहिं, बियासणएहिं अट्ठहिं उ . // 6 // एगासणोहिं चउहि, निव्विगइयतिगेण अंबिलदुगेणं / तकंबिलेण एगेणा-यरणाउ इमं नेयं // 7 // भयवइयउवहाणं तवंतस्स लगइ बहुकालो / तोसविणा नवकारं, जइ मरइ ‘कहं लहइ सुगई ? // 8 // गोयम उवहाणमिणं, जइ य चिय जेण काउमाढत्तं / तेण तय च्चिय पत्तं, नवकारं मुणसु इय आणा कन्नाहेडयपढिओ वि, सव्वकज्जाणि कुणइ पायमिमो / उवहाणविहीइ पुणो, पढिउ सुलहं कुणइ बोहिं // 10 // जो अकयविहीउ इमं, गोयम गिव्हिज्ज दिज्ज वा कोइ / / अरिहंतसिद्धसाहू, सो आसाइज्ज तह य सुयं // 11 // . 325