________________ समुचियभूभागम्मि विराहियं कहइ सेससत्थेणं / इरियं पडिक्कमेई करेइ सज्झायमाईयं . . // 85 // अह उग्गयम्मि सूरे समुचियवेलाएँ सूरिवसहीए। ... वच्चइ पोसहसामाइयाण पारावणट्ठाए .. // 86 // सूरिसमीवे गंतुं इरियं पडिकमिय भणइ आगमणं / आलोयंतो वंदिय पोसहपारावणे पोति // 87 // पेहइ वंदइ संदिसह इच्छाकारेण पोसहं अम्हे / पारावह भणइ गुरू पुणो वि काव्वयं भद्दा ! // 8 // वंदिय भणेइ पोसहु पारहं गुरु भणइ भद्द ! तुब्भेहिं / नो भो मोत्तव्वो इह आयरो त्ति ते उट्ठिउं भणइ // 89 // नवकारं तो वंदिय भूमितले निहिय जाणुकरकमलो / / छउमत्थो इच्चाई वंदिय गाहं इमं भणइ . // 90 // वंदणयाई दाउं तो गच्छइ सावओ नियावासं / तत्थ य सकीयजोगेहिं पकुणइ गिहि गेहकिच्चाई // 91 // जो किर अट्ठमिमाइसु सड्ढो अहरत्तपोसहं कुणइ। .. तस्सेसो किर भणिओ दिणकिच्चविही इमो सव्वो // 92 // उपधानपौषधे किंचिद्विशेषमाह जो पुण उवहाणस्स कारणा कुणइ पोसहं सड्ढो / किंचि तव्विसए निच्चकिच्चसेसं पवक्खामि तहि उवहाणतवं किर काउमणो पूइऊण देवगुरू / . सुहलग्गे चंदबले सुगुरुसमीवम्मि आगंतुं वंदिय भणेइ इच्छाकारेणं अम्हि कारखह भयवं ! / उवहाणतवं तो सुहगुरू वि अभिमंतिए वासे , // 2 // // 3 //