________________ // 4 // पू.आ.श्रीचक्रेश्वरसूरिविरचिता // पोसहविही // सव्वविरएहिं जेहिं सावज्जं सव्वहा परिच्चत्तं / तेसिं गुरूण पाए नमामि सव्वेण भावेणं // 1 // धम्मत्थसवणकंखिहिं धम्मकरणुज्जएहिं सत्तेहिं / सुस्सावियसयसाहारोद्दट्टज्झाणरुक्खेहि // 2 // वावारविगहपरिवज्जिएहिं सव्वेहि सुद्ध चित्तेहिं / अट्ठमिचउदसिचउमासपज्जुसवणाइपव्वेसु उवहाणतवं च तहा वहमाणेहिं सपोसहं किच्चा / भणियं समयम्मि तओ भणामि पोसहविहिं एत्तो कत्थइ तहिं पोसहविहीं तहय अहोरत्तकिरियकहणं च / तह पोसहपारावणविहिं च संखेवओ सुणह तहिं पोसहं पगिण्हइ साहुसमीवम्मि चेइयहरे वा / पोसहसालाए गिहेगदेसठाणम्मि वा विहिणा तत्थ नियावासाओ गुरुवसहिं गंतुं वंदिऊण गुरुं / इरियं पडिक्कमेइ कट्ठासणयं च गिण्हेइ // 7 // तत्तो पुणोऽभिवंदिय मुहपत्तिं पेहिऊण वंदित्ता / संदिसह इच्छाकारेण पोसहं संदिसावेमि वंदिय इच्छाकारेण पोसहे ठामी भणइ उद्वित्ता / नवकार ओच्चरित्ता तो पोसहदंडयं भणइ दिणरत्ति पोसहम्मि जाव अहोरत्तं पज्जुवासामि / दिवपोसहम्मि पभणइ जादिवसं पज्जुवासामि // 10 // रत्तित्तणयम्मि जारत्ति पज्जुवासामि भणिय तो वंदे / पोत्तिं पेहिय वंदइ सामाइय संदिसावेमि // 11 // . 311 // 8 //