________________ मुणिवयणजायसद्धो नरवइधूयाए बोहणनिमित्तं / सयलं नियवुत्तंतं कहेइ तीए सवित्थारं / // 318 // सयपालण त्ति दारं सपसंगं वन्नियं अओ वोच्छं / / पच्चक्खाणस्स फलं समासओ सुत्तनिद्दिद्धं // 319 // एयं पच्चक्खाणं विसुद्धभावस्स होइ जीवस्स / चरणाराहणजोगा निव्वाणफलं जिणा बिंति // 320. // पच्चक्खाणेण जिया थेवेण वि भावणाए चिन्नेणं / पावेंति सुहसमिद्धि दामनगसत्तवइणों व्व . // 321 3 दामन्नग कुलपुत्तो वहविरई पालिऊण दढचित्तो / तरिऊण आवयाओ जाओ भोगाण आभागी // 322 // अमुणियफल सत्तपए निवइकलत्तं च कायमंसं च / चइऊणं सुरलोए उववन्नो सत्तवईओ वि // 323 // पच्चक्खाणेण मुणी तवोविसेसेहिं चित्तरूवेहिं / नाणाविहरिद्धीए सणंकुमारो व्व पावेंति . // 324 // पच्चक्खाणेण जिओ आसवदारस्स निग्गहं कुणई। संवरियासवदारो कम्मेहिं न वज्झए कहवि // 325 // पच्चक्खाणेण तवो तवेण कम्माण निज्जरा होइ।.. निज्जरितकम्मकवओ जीवो पावेइ परमपयं // 326 / पच्चक्खाणमिणं सेविऊण भावेण जिणवरुद्दिटुं / पत्ता अणंतजीवा सासयसोक्खं लहुं मोक्खं // 327 // आवस्सयपंचासयपणवत्थुयविवरणाणुसारेणं / . पच्चक्खाणसरूवं भणियं जसएवसूरीहिं // 328 // पच्चक्खरगणणाए गंथपमाणं सयाणि चत्तारि / . नयणवसुरुद्दमाणो (1182) विक्कमनिववच्छरो एत्थ // 329 / 310