________________ वन्दणसंवरणाई किरियानिउणत्तणं तु कोसल्लं।। तित्थनिसेवा य सयं, संविग्गजणेण संसग्गी // 41 / भत्ती आयरकरण, जहु च्चियं जिणवरिंदसाहूण / थिरया दढसम्मत्तं, पभावणुस्सप्पणाकरणं // 42 / लक्खिज्जइ सम्मत्तं, हिययगयं जेहि ताई पंचेव / उवसम संवेगो तह, निव्वेयऽणुकंप अत्थिक्कं // 43 / अवराहे पि महंते, कोहाणुदओ वियाहिओवसमो। संवेगो मुक्खं पइ, अहिलासो भवविरागो ऊ / / 44 / निव्वेओ चागिच्छा, तुरियं संसारचास्यगिहस्स। .. दुहिए दयाऽणुकंपा, अत्थिक्कं पच्चओ वयणे . // 45 // परतित्थियाण तद्देवयाण तंग्गहियचेइयाणं च / जं छव्विहवावारं, न कुणइ सा छव्विहा जयणा .. // 46 / वंदणनमंसणं वा, दाणाणुपयाणमेसि वज्जेई / आलावं संलावं, पुव्वमणालत्तगो न करे .. // 47 वंदणयं करजोडणसिरनामण पूयणं च इह नेयं / . वायाइ नमुक्कारो, नमसणं मणपसाओ अ // 48 गउरवपिसुणं वियरणमिट्ठासणपाणखज्जसिज्जाणं / तं चिय दाणं बहुसो, अणुप्पयाणं मुणी बिंति // 49 सप्पणयं संभासणकुसलं वो सागयं व आलावो / संलावो पुणरुत्तं, सुहदुहगुणदोसपुच्छाओ // 50 आगारा अववाया, छ च्चिय कीरंति भंगरक्खट्ठा / . रायगणबलसुरक्कमगुरुनिग्गहवित्तिकंतारं // 51 राया पुराइसामी, जणसमुदाओ गणो बल बलिणो / कारंति वंदणाई, कस्स वि एए तह सुरा वि / // 52