________________ सुठु वि तवं कुणंतो, जयणाविहूणो न पावइ सिद्धि / सुसढो व्व लहइ दुक्खं, किं पुण जीवो तवविहूणो // 269 // एसो सावगधम्मो, संखेवेणं तु साहिओ तुम्ह / / इण्डिं सुणेह तुब्भे, अभिग्गहा जे उ सड्ढाणं // 270 // चिइवंदणं तिकालं, पच्चक्खाणं अपुव्वपढणं च गाहद्धगाहसुणणं, गुणणं नवकारमाईणं // 271 // विस्सामणं जईणं, ओसहदाणं गिलाण पडियरणं / लोयदिणे घयदाणं, दायव्वमभिग्गहजुएहि पहसंतगिलाणेसु, आगमगाहीसु तहय कयलोए / उत्तरपारणगम्मि य, दिन्नं सुबहुप्फलं होइ // 273 // संखेवेणं एए, अभिग्गहा साहिया मए तुम्ह / इण्डिं सुणेह तुब्भे, जं दुलहं इत्थ संसारे // 274 // अणोरपारम्मि भवोअहिम्मि, उबुडनिबुडु कुणंतएहिं / दुक्खेण पत्तं इह माणुसत्तं, तुब्भेहिं. रोरेण निहाणभूयं // 275 // तत्तो देसं कुलं जाई, रूवं आरोग्गसंपया / . विनाणं तहय सम्मत्तं, दुल्लहं भवचारए // 276 // पुणो चारित्तसंपत्तो सुयसायरपारओ / जहोवइट्ठधम्मस्स देसओ दुहनासओ // 277 // सुद्धधम्मस्स दायारो, सूरी माया पिया भवे / दुल्लह एसो हु जीवाणं, बुड्डताणं भवन्नवे // 278 // ता एयं दुलहं लहिउं, सव्वसुक्खाण दायगं / सुई जे उ न कुव्वंति, ते अंधाओ पाणिणो // 279 // हा ते अन्नाणमोहंधा, लक्ष्णं रयणायरं / कायखंडं तु गिण्हन्ति, न सुणंति जे जिणागमं / // 280 // 200