________________ // 48 // // 49 // // 50 // // 51 // // 52 // // 53 // खीणे दंसणमोहे तिविहम्मि वि भवनियाणभूयम्मि / निप्पच्चवायमउलं सम्मत्तं खाइयं होइ जं जह भणियं तं तह करेइ सइ जम्मि कारगं तं तु / रोयगसम्मत्तं पुण रुइमित्तकरं मुणेयव्वं सयमिह मिच्छद्दिट्ठी धम्मकहाईहि दीवइ परस्स। सम्मत्तमिणं दीवग कारणफलभावओ नेयं तविहखओवसमओ तेसिमणूणं अभावओ चेव / एवं विचित्तरूवं सनिबन्धणमो मुणेयव्वं . किं चेहुवाहिभेया दसहावीमं परूवियं समए / ओहेण तंपिमेसि भेयाणमभिन्नरूवं तु तं उवसमसंवेगाइएहि लक्खिज्जई उवाएहि। आयपरिणामरूवं बज्झेहिं पसत्थजोगेहिं' इत्थ य परिणामो खलु जीवस्स सुहो उ होइ विन्नेओ। कि मलकलंकमुक्कं कणगं भुवि सामलं होइ पयई व कम्माणं वियाणिउं वा विवागमसुहं ति। अवरद्धे वि न कुप्पइ उवसमओ सव्वकालं पि नरविबुहेसरसुक्खं दुक्खं चिय भावओ य मन्नंतो। संवेगओ न मुक्खं मुत्तूणं किंचि पत्थेइ नारयतिरियनरामरभवेसु निव्वेयओ वसइ दुक्खं / अकयपरलोयमग्गो ममत्तविसवेगरहिओ वि दळूण पाणिनिवहं भीमे भवसागरम्मि दुक्खत्तं / अविसेसओ णुकंपं दुहा वि सामत्थओ कुणइ मन्नइ तमेव सच्चं निस्संकं जं जिणेहिं पन्नत्तं / . सुहपरिणामो सव्वं कंखाइविसुत्तियारहिओ 168 // 54 // // 55 // // 56 // // 57 // // 58 // // 59 //