________________ सुपरिपक्खियइ न जस्सु, सच्च संसउ मणिछिन्नि वि / देइ सुदेव-सुधम्म-सुगुरुरयणाइ तिन्नि वि // 153 // सो जि धम्मु सचराचर जीवहदयसहिओ। सो गुरु जो घर-घरणि-सुरयसंगमरहिओ // इंदियविसयकसाइहिं देवु जु मुक्कमलु / . . एहु लेहु रयणत्तउ चिंतियदिप्नफलु // 154 // देवं गुरुं च धम्मं च, भवसायरतारयं / गुरुणा सुप्पसनेण, जणो जाणइ णिच्छियं // 155 // धम्मन्नू धम्मकत्ता य, सया धम्मपरायणो / .. सत्ताणं धम्मसत्थत्थ-देसओ भण्णए गुरु // 156 // तं सुगुरुसुद्धदेसण-मंतक्खरकन्नजावमाहप्पं / जं मिच्छविसपसुत्ता वि, केइ पार्वति सुहबोहं // 157 // सग्गापवग्गमग्गं, मग्गंताणं अमग्गलग्गाणं / दुग्गे भवकंतारे, नराण नित्थारया गुरुणो // 158 / / अन्नाण-निरंतर-तिमिर-पूरपडिपूरियम्मि भवभवणे / को पयडेइ पयत्थे, जइ गुरुदीवा न दिप्पंति // 159 // अक्खरु अक्खइ कि पि न इहइ, अन्नु वि भवसंसारह बीहइ / संजमनियमिएहि खणु वि न मुच्चइ, एह धम्मिय सुहगुरु वुच्चइ / 160 छव्वीहजीवनिकाओ विराहइ, पंच वि इंदिय जो न वि साहइ / कोह-माण-मय-मच्छरि जुत्तउ, सो गुरु नरयहं नेइ निरुत्तउ॥१६१॥ आलय-विहार-भासा, चंकमण-ट्ठाण-विणयकम्मेहि / . सव्वन्नू भासिएहि, जाणिज्जइ सुविहिओ साहू // 162 / / पुलायणामो पढमो चरित्ती बीओ बउसो तइऔ कुसीलो / चउत्थओ होइ निग्गंथनामो, सव्वुत्तमो पंचमओ सिणाओ // 163 / / 142