________________ बहुवित्थरमुस्सग्गं, बहुविहमववायवित्थरणं / / णाउं लंघेउ णुत्तविहिं, बहुगुणजुत्तं करेज्जाहि . // 132 / मूलोत्तरगुणसुद्धं, थी-पसु-पंडगविवज्जियं वसहिं / . सेविज्ज सव्वकालं, विवज्जए हुंति दोसाओ // 133 // सट्ठीवंसो दोधारणाउ, चत्तारि मूलवेलीओ। .. मूलगुणे हुववेया, एसा उ अहागडा वसही // 134 // जं न तयट्ठा कीयं, नेव वूयं गहियमन्त्रेणं / आहड्ड पामिच्चं, वज्जिऊण तं कप्पए वत्थं // 135 // तुंबयदारुमट्टिय-पत्तं कम्माइदोसपरिमुकं / .. उत्तम-मज्झ-जहण्णं, जईण भणियं जिणवरेहि // 136 // एसा चउक्कसोही, निद्दिट्ठा जिणवरेहिं सव्वेहिं / एयं जहसत्तीए, कुणमाणो भण्णए साहू // 137 // उद्दिट्टकडं भुंजइ, छक्कायपमद्दणो घरं कुणइ / पच्चक्खं च जलगए, जो पियइ कहं नु सो साहू ? // 138 / / जे संकिलिट्ठचित्ता, मायट्ठाणम्मि निच्चं तल्लिच्छा / आजीवगभयगच्छा, मूढा नो साहुणो हुंति // 139 // सीलंगाण सहस्सा, अट्ठारस जे जिणेहिं पण्णत्ता / जो ते धरेइ सम्म, गुरुबुद्धी तम्मि कायव्वा // 140 // उणत्तं न कयाइ वि, माणसंखं इमं तु अहिगिच्च / जं एयधरा सुत्ते, णिद्दिट्ठा वंदणिज्जा उ // 141 // पंचविहायाररओ, अट्ठारससहस्सगुणगणोवेओ। एस गुरु मह सुंदर, भणिओ कम्मट्ठमहणेहिं // 142 // अट्ठाविहगणिसंपय, चउग्गुणा णवरि हुँति बत्तीसं / .. विणओ य चउब्भेओ, छत्तीसगुणा इमे तस्स . // 143 // 140