________________ // 72 // // 73 // // 74 // // 75 // // 76 // // 77 // समणाणं को सारो, छज्जीवनिकाय-संजमो एयं / वयणं भुवणगुरुणं, निहोडियं पयडरूवं पि .. मन्नति चेइयं अज्ज-रक्खिएहिमणुनायमिह केइ / ताणमयं मयबझं, जम्हा णो आगमे भणियं एयं भणियं समए, इंदेणं साहूजाणणनिमित्तं / जक्खगुहाए दारं, अण्णमुहं ठावियं तइया दुग्गंधमलीणवत्थस्स, खेलसिंघाणजल्लजुत्तस्स / जिणभवणे णो कप्पइ, जइणो आसायणाहेऊ भावत्थयदव्वत्थय-रूवो सिवपंथसत्थवाहेण / सव्वन्नूणा पणीओ, दुविहो मग्गो सिवपुरस्स जावज्जीवं आगम-विहिणा चारित्तपालणं पढमो / नायज्जियदव्वेणं, बीओ जिणभवणकरणाई जिणभवणबिंबठावण-जत्तापूयाइ सुत्तओ विहिणा / दव्वत्थय त्ति नेयं, भावत्थयकारणत्तेण छण्हं जीवनिकायाणं, संजमो जेण पावए भंगं / तो जइणो जगगुरुणो, पुप्फाईयं न इच्छंति तं णत्थि भुवणमझे, पूयाकम्मं न जं कयं तस्स / जेणेह परमआणा, न खंड़िया परमदेवस्स मेरुस्स सरिसवस्स व, जत्तियमित्तं तु अंतरं होइ / भावत्थय-दव्वत्थयाण, अंतरं तत्तियं णेयं उक्कोसं दव्वत्थयं, आराहिय जाइ अच्चुयं जाव / भावत्थएण पावइ, अंतमुहुत्तेण निव्वाणं मोत्तूण भावत्थयं, जो दव्वत्थए पवत्तए मूढो / सो साहू वत्तव्यो, गोयम ! अजओ अविरओ य ..... . 135 // 78 // // 79 // // 80 // // 81 // // 82 // // 83 //