________________ // 4 // // 5 // ॥सुमिणसित्तरी // एवं विसिट्ठकालाभावम्मि वि मग्गगामिणो जह उ। पाविति इच्छियपुरं तह सिद्धि संपयं जीवा मउईए वि किरियाए कालेणारोगयं जह उविति। तह चेव उ निव्वाणं जीवा सिद्धंतकिरियाए दुप्पसहंतं चरणं भणियं जं भगवया इहं खित्ते / आणाजुत्ताणमिणं न होइ अहुण त्ति वामोहो आणाबज्झाणं पुण जिणसमयम्मि वि न जाउ एयंति / तम्हा इमीऍ एत्थं जत्तेण पयट्टियव्वं ति णेगंतेणं चिय लोगनायसारेण इत्थ होयव्वं / बहुमुंडाइवयणओ आणा इत्तो इह पमाणं' आचरणा वि हु आणाऽविरुद्धगा चेव होइ नायं तु / इहरा तित्थयरासायण त्ति तल्लक्खणं चेवं असढेण समाइन्नं जं कत्थइ केणई असावज्जं / न निवारियमन्नेहि वि बहुमणुमयमेयमायरियं किंच उदाहरणाई बहुजणमहिगिच्च पुव्वसूरीहिं। इत्थं निदंसियाई एयाइं इमम्मि कालम्मि केणइ रन्ना दिट्ठा सुमिणा किल अट्ठ दुसमसुसमंते / भीई चरमोसरणे तेसि फलं भगवया सिटुं गय वानर तरु धंखे सीहे तह पउम बीय कलसे य।। पाएण दुस्समाए सुमिणाऽणिटुप्फला धम्मे . चलपासाएसु गा चिटुंति पडएसु वि न निति / निति वि तह केइ जहा तप्पडणाओ विणस्संति // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // // 11 // 24