________________ // 4 // // 7 // // 8 // // 9 // संमत्तं निच्चलत्तं, वयाण परिपालणं अमायत्तं / पढणं गुणणं विणओ, लब्भंति पभूयपुण्णेहिं उस्सग्गे अववाये, निच्छयववहारम्मि निउणतं / मणवयणकायसुद्धी, लब्भंति पभूयपुण्णेहि अवियारं तारुन्नं, जिणाणं राओ परोवयारत्तं / निक्कंपया य झाणे, लब्भंति पभूयपुण्णेहि परनिंदापरिहारो, अप्पसंसा अत्तणो गुणाणं च / संवेगो निव्वेओ, लब्भंति पभूयपुण्णेहि निम्मलसीलब्भासो, दाणुल्लासो विवेगसंवासो / चउगइदुहसंतासो, लब्भंति पभूयपुण्णेहि दुक्कडगरिहा सुक्कडा-णुमोयणं पायच्छित्त तवचरणं / सुहझाण नमुक्कारो, लब्भंति पभूयपुण्णेहिं इयगुणमणिभंडारो, सामग्गी पाविऊण जेण कओ। विच्छिनमोहपासा, लहंति ते सासयं सुक्खं // उपदेशकुलकम् // (शार्दूलविक्रडितम्) लध्दूणुत्तममाणुसत्तणमिणं कत्तो वि पुण्णोदया, धम्मं तित्थयराण तत्थ वि तहा पावित्तु तुब्भेहि भो ! / नीहारेंदुसमुज्जलेण मणसा देवो जएक्कप्पहू, पूंयापुव्वगमादरेण महया सम्माणणिज्जो जिणो पच्चक्खाणमणुक्खणं जलहरासारोवमाणो तहा, कामक्कोहदवग्गिनासणकए सग्गापवग्गावहो / सज्झाओ पडिवनपुननियमाणऽच्चतमब्भुज्जमो, कायव्वो जिणदेसिएण विहिणा दीणाइदाणे विय 39 // 10 // // 1 // // 2 //