________________ // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // // 11 // // 12 // मा कीरउ पाणिवहो, मा जंपह मूढ ? अलियवयणाई। मा हरह परधणाइ मा परदार मइ कुणह. . . धम्मो अत्थो कामो, अन्ने जे एवंमाइया भावा। हरइ हरंतो जीयं, अभयं दितो नरो देइ न य किंचि इहं लोए, जीयाहिंतो जियाण दइययरं। तो अभयपयाणाओ न य अन्नं उत्तमं दाणं सो दाया सो तवसी, सो य सुही पंडिओ य सो चेव / जो सव्वसुक्खबीयं, जीवदयं कुणइ खंति च / किं पढिएण सुएण व, वक्खाणिएण काइं किर तेण / जत्थ न नज्जइ एयं, परस्स पीडा न कायव्वा जो पहरइ जीवाणं, पहरइ सो अत्तणो सरीरम्मि। अप्पाण वेरिओ सी, दुक्खसहस्साण आभागी जं काणा खुज्जा वामणा य, तह चेव रुवपरिहीणा / उप्पज्जंति अहन्ना, भोगेहिं विवज्जिया पुरिसा इय जं पाविति य दुहसयाई, जणहिययसोगजणयाई / तं जीवदयाए विणा, पावाण वियंभियं एवं जं नाम किंचि दुक्खं, नारयतिरियाण तह य मणुयाणं / ' तं सव्वं पावेणं, तम्हा पावं विवज्जेह सयणे धणे य तह परियणे य, जो कुणइ सासया बुद्धी। अणुधावंति कुढेणं, रोगा य जरा य मच्चू य नरए जीय ? दुस्सहवेयणाउ, पत्ताउ जाओ पई मूढ ? जइ ताओ सरसि इन्हेिं, भत्तं पि न रुच्चए तुज्झ अच्छंतु ताव निरया, जं दुक्खं गब्भवासमज्झम्मि / पत्तं तु वेयणिज्जं, तं संपइ तुज्झ वीसरियं . // 13 // // 14 // // 15 // // 16 // // 17 // // 18 //