________________ // 56 // // 57 // // 58 // // 59 // आणा वि ताण सा भग्गा, गुरुणो सुक्खकारिणी / मिच्छट्ठिी तओ सो वि, लर्बु तल्लक्खणावलि जणेइ निव्वुइ जे तु, जायं फलमणुत्तरं / गुरुधम्मदुमाहितो, तेण तं पि हु हारियं चोयणं पि हु सो देइ, जो दाउं जाणती तयं / परस्स वयणं सुच्चा, जो रोसेण न जिप्पई नाहंकारं करेइ त्ति, मायामोसविवज्जिओ / सव्वजीयहियं चित्ते, जस्सऽत्थि सुविवेयओ जा का वि गुरुणो आणा, सुद्धसद्धम्मसाहिगा। कहिया हिया य सम्मं, कायव्वा विहिणाइ सा संखेवेणमिहत्तमागममयं गीयत्थसत्थोचियं . कीरंतं गुणहेउ निव्वुइकरं भव्वाण सव्व(व्वेसि)जं। साहूणं समणीगणस्स य सया सड्ढाण सढीणयु सिक्खत्थं जिणचंदसूरिपयवीसंसाहगं सव्वहा एयं जिणदत्ताणं करेई जो कारवेइ मन्नेइ / ' सो सव्वदुहाण लहुं जलंजलि देइ सिवमेइ // 60 // // 61 // // 62 // खरतरगच्छीयश्रीजिनपतिसूरिशिष्यकृतम् / मिथ्यात्वस्थानविवरणकुलकम् // देवाण गुरूणं पि य सिरमणिणो जिणवइस्स पयपउमं / पणमिय सम्मसरूवं, सुयाणुसारेण दंसेमि // 1 // सम्मत्तं सद्दहणं, तं पुण गुरु-देव-धम्मविसयं तु / सुयमणियगुणजुएसुं, तेसिं पडिवत्तिरूवं जं 105 // 2 //