________________ खरतरगच्छीय पू.आ.श्री.जिनदत्तसूरिविरचितम् // कालस्वरूपकुलकम् // पणमवि वद्धमाणु जिणवलहु परमप्पयलच्छिहिं जिणवल्लहु / सुगुरूवएसु देमि हउ भव्वह सुक्खह कारणु होइ जु सव्वह // 1 // मीण सणिच्छरम्मि संकंतइ मेसि जंति पुण वक्कु करंतइ / देस भग्ग परचक्क पइट्ठा वड वड पट्टण ते पब्भट्ठा // 2 // विक्कमसंवच्छरि सय बारह हुयइ पणट्ठउ सुहु घर वारह / इह(य)संसारि सहाविण संतिहि वत्तहि सुम्मइ सुक्खु वसंतिहि // 3 // तह वि वत्त न वि पुच्छहि धम्मह जिण गुरु मिल्लहि कज्जिण दम्मह / फलु न वि पावहि माणुसजम्मह दूरि होति ति जि सिवसम्मह // 4 // मोहनिद्द जणु सुत्तु न जग्गइ तिण उट्ठिवि सिवमग्गि न लग्गइ / जइ सुहत्थु कु वि गुरु जग्गावइ तु वि तव्वयणु तासु न वि भावइ 5 परमत्थिण ते सुत्त वि जग्गहि सुगुरुवयणि जे उठेवि लग्गहि / राग होस मोह वि जे गंजहि सिद्धिपुरंधि ति निच्छइ भुंजहि // 6 // बहु य लोय लुंचियसिर दीसहिं पर रागद्दोसिहि सहुं विलसहि। पढहिं गुणहि सत्थइ वक्खाणहि परि परमत्थु तित्थु सु न जाणहि 7 तिणि वेसिणि ते चोर रिहिल्लिउ मुसहि लोउ उम्मग्गिण घल्लिउ / ताहं पमत्तउ किवइ न छुट्टइ जी जग्गइ सद्धम्मि सु वट्टइ // 8 // ते वि चोर गुरु किया सुबुद्धिहि सिववहुसंगमसुहरसलुद्धिहि। ताहि वि खावहि अप्पउपासह छुट्टइ.कह वि न जिव भवपासह 9 दुख होइ गोयक्किहि धवलउ पर पेज्जंतइ अंतरु बहलउ। एतु सरीरि सुक्खु संपाडइ अवरु पियउ पुणु मंसु वि साडइ // 10 // कुगुरु सुगुरु सम दीसहि बाहिरि परि जो कुगुरु सु अंतरु वाहि रि!। जो तसु अंतरु करई वियक्खणु सो परमप्पउ लहइ सुलक्खणु 11. 15