________________ // 4 // // 5 // // 6 // // 7 // // 8 // सुद्धं अद्धसुद्धं अविसुद्धं चेव करणकालं जा / तत्तोऽनिअट्टिकरणं अंतमुहुत्तं पवज्जित्ता / तप्पज्जंते सुद्धं पुंजं समुदीरिऊण वेअंतो। खाओवसमिगसम्मत्त-कारगो होइ सो पच्छा अंतोमुत्तमवरं छावढेि सागराइं उक्कोसं / चउगइगओ वि एवं सम्मत्तं लहइ भव्वजिओ अण्णो वि तब्विहो च्चिअ नवरि तिपुंजं करेइ नापुव्वे / करणम्मि सुज्झइ च्चिअ ठिइरसघायाइकरणेण तत्तोऽनिअट्टिकरणे वट्टित्ता सुज्झिऊण य तहेव / तव्विरमे विक्खंभिअ मिच्छत्तुदयं तओ भवइ उवसमसम्मट्ठिी अंतमुहत्तं तओ स निअमेण / / वेअइ मिच्छत्तं चिअ तदुवरमे कलुसपरिणामो कोई पुण सासाणो होउं उवसमिग अंतभागम्मि / वेअइ मिच्छत्तं चिअ तं चिअ जं तस्स संतं तु उवसमिअसम्मकाले तस्स पएसोदएण मिच्छत्तं / केइ भणंति भणि एअं पुण कप्पभासम्मि जो अन्नया उ सम्मं अपुव्वं लहइ अद्धसुद्धं सो। पुंजं करिउं तव्वेअगो असुद्धं तओ कुणइ . असुद्धविसुद्धाओ कड्ढिऊण कोई तहाविहो सं वा ? / पच्छा खाओवसमिग-समद्दिट्ठी जिओ होइ जे कम्मपयडिपाहुड-विअक्खणा ते भणंति पुण एवं / उवसमिअसम्मकाले सम्मत्तमहापवत्तेण तत्थ पढमं विसुज्झिअ अभवजिआओ अणंतगुणणाए। तत्तो अपुव्वकरणं भिन्नमुहुत्तं पव्वज्जेइ 149 // 10 // // 11 // // 12 // // 13 // // 14 // // 15 //