________________ . ॥संज्ञाकुलकम् // रुक्खाण जलाहाये 1 संकोइणिया भएण संकुचिया 2 / नियतंतुएहि वेढई वल्ली रुक्खे परिगहे य 3 // 1 // इथियपरिरंभेणं कुरुबगतरुणो फलंति मेहूणे 4 / तह कोकणयस्स कंदो हुंकारे मुयइ कोहेणं 5 // 2 // माणे भरइ रुयंती 6 छायइ वल्ली फलाई मायाए 7 / लोभे बिल्लपलासा खिवंति मूलं निहाणुवरि 8 रयणीए संकोओ कमलाणं होइ लोकसन्नाए 9 / ओहे चइत्तु मग्गं चढंति रुक्खेसु वल्लीओ 10 * ए दस थावरसन्ना सुह 1 दुह 2 मोहाइ 3 तह दुगुंछा 4 य / सोगे 5 धम्मो 6 एए सोलस सन्ना तसजिएसुं // 3 // // 4 // // 1 // // 2 // ॥सम्मत्तकुलयं-१ // लच्छीकुलहररूवं सम्मत्तं धम्मकप्पडुमबीअं। एवं भावेअव्वं बहुमाणा निउणदंसीपि(हिं) सव्वन्नु सव्वदंसी अवितहवाई तिलोअनमणिज्जो / जिअरागदोसमोहो अरिहं देवो महं होउ वरस्यणत्तयधारा संविग्गा भिक्खभोइणो.मुणिणो / सुदवएस असंगा सुसाहुणो मम सया गुरुणो सव्वत्थ जत्थ भणिअं अहिंससच्चं तहा अचोरिकं / बभमपरिग्गहो वि अ सो धम्मो मे सया होउ सम्मत्तरयणमेव जे सम्मं निअमणे वि भाविति / के लद्धसुद्धतत्ता पाविति समीहिअं सिद्धि 135 // 3 //