________________ जायमाणस्स जं दुक्खं, मरमाणस्स जंतुणो। . तेण दुक्खेण संतत्तो, न सरइ जाइमप्पणो . . || 17 // सूईहिं अग्गिवन्नाहिं, संभिन्नस्स निरंतरं / जावइयं गोयमा ! दुक्खं, गब्भे अट्ठगुणं तओ // 18 // गब्भाओ णीहरंतस्स, जोणीजंतणिपीलणे। सयसाहस्सियं दुक्खं, कोडाकोडिगुणं पि वा * // 19 // उयरे को वि वसंतो धम्म सुणिऊण चित्ततल्लेसो।। तदप्पिअकरणो मरिउं सुहभावा जाइ सुरलोअं // 20 // ओही परबल दटुं चउहा सेण्णं वेउव्विउं जुज्झे / तदप्पिअकरणो मरिउं वच्चइ एसो महानरए // 21 // दोहि असईहि पसई दुप्पसइ सेइआ चउ कुडवो। चउकुडवो मगहपत्थो चउपत्थो आढओ होई // 22 // एयं देहसरूवं कहियं वीरेहि गोयमाईहिं / तंदुलवेयालियसुए भविअजणविबोहणट्ठाए // 23 // // 1 // // 2 // // अभव्यकुलकम् // जह अभवियजीवेहिं, न फासिया एवमाइया भावा / इंदत्तमणुत्तरसुर, सिलायनर नारयत्तं च केवलिगराणहरहत्थे, पव्वज्जा, तित्थ वच्छरं दाणं / पवयणसुरी सूरत्तं, लोगंतिय देवसामित्तं तायत्तीससुरत्तं, परमाहम्मिय जुयलमणुअत्तं / संभिन्नसोय तह, पुव्वधराहारयपुलायत्तं मइनाणाई सुलद्धी, सुपत्तदाणं समाहिमरणत्तं / . . चारणदुगमहुसप्पिय, खीरासवखीणठाणत्तं 132 // 3 // // 4 //