________________ अप्पविसोही एसा जो भावइ निच्चकालउवउत्तो / सो अचिरेणं साहइ नियजीयं सुद्धपरिणामो // 24 // // आराहणाकुलयं // नाणे दंसण चरणे तव विरिए सिद्धसक्खियं सुद्धि ! गिहामी उच्चरामी वयाइं जहगहियभंगाई // 1 // पुढवि-दग-अगणि-वाऊ-वण-बि-ति-चउरिदिएसु जीवेसु / नारय-तिरिय-नराऽमरजिएसु खामेमि खमयामि // 2 // पाणिवहाऽलिय-चोरिय-मेहुण-धणमुच्छ-कोह-मय-माया / लोहं पिज्जं दोसं कलहऽब्भक्खाण पेसुण्णं // 3 // अरइरइ परविवायं मायामोसं च मिच्छसल्लं च / इय पावट्ठाणाई अट्ठारस वोसिरामि अहं // 4 // जं राग-दोस-मोहेण तिविहतिविहेण तिहुयणम्मि मए / विहियं धम्मविरुद्धं इहऽनभवियं पि तं निंदे जिण-सिद्ध-सूरि-उज्झाय-साहु-साहम्मि-भव्वजीवेसु / तिक्कालं जं सुकयं तमहं अणुमोयए सम्म सागारमणागारं सरणं जिण-सिद्ध-साहु-धम्मेसु। पंचपरमेट्ठिमंतं सरेमि सुहभावसंजुत्तो नाहं कस्स, न मज्झ वि को वि, अहं निम्ममो सदेहे वि / किंतु सिरिवीरपाया गई मई हुंतु सयकालं . // 8 // // 6 // // 7 // .. // आलोयणाकुलयं // जिण-सिद्ध-केवलीणं मणपज्जवनाणि-ओहिनाणीणं / . चउदस-दसपुव्वीणं दुन्नियचरियं समालोए // 1 // 113