________________ // 3 // // 4 // ... // 7 // // 8 // वायाए काएणं मणरहियाणं न दारुणं कम्मं / . जोयणसहस्समाणो मुच्छिममच्छो उयाहरणं वइकायविरहियाण वि.कम्माणं चेत्तमेत्तविहियाणं / अइघोरं होइ फलं तंदुलमच्छो व्व जीवाणं गलियविवेयाण मणो निग्गहिउं दुक्करं फुडं ताव / संजायविवेगाण वि दुक्करमेयं पि किर होन्ति करयलगयमुत्तीणं तित्थयरसमाण चरणभावाणं / ताणं पि हु जं दुक्करमेयमहो महमच्छरियं / मणनिग्गहवीसासो कइयावि न जुज्जए इहं काउं। अप्पडिवायं नाणं उप्पन्नं जा न जीवाणं थेवमणदुक्खियस्स वि जाणतो अइवदारुणविवागं / जइ कह वि खंचिय मणं धारेमी एगवत्थुम्मि पाणिपुडनिबिडपीडियरसं व पेच्छामि तह वि उत्तिगयं / अह ओवायं पुणरवि केरिसमन्नं अणुसरामि ? . मयमत्तं पिव हत्थिं धम्मारामं पुणो वि भंजंतं / दटुं विवेयमिठो सुहझाणक्खंभमल्लियइ उल्लसिओ आणंदो खणमेगं जाव ताव चिंतेमि / ता सिद्धमंतिओ इव दीसइ अन्नत्थ किं करिमो? मणमक्कडेण सुइरं मह देहं तावियं अहो बाढं / ता कह निग्गहिऊणं होहामि अहं सुही एत्थ ? सिद्धिपुरीए सिद्धी जाव फुडं तुज्झ होइ रे जीव ! / ता मणराएण समं मा विग्गहउवरमं कुणसु अह विग्गहम्मि चत्ते पत्ते निक्कंटगम्मि रज्जम्मि। एस तुहं तं काही सया वि जह दुक्खिओ होइ . 106 // 9 // // 10 // // 11 // // 12 // // 14 //