________________ // 11 // // 12 // // 13 // // 14 // // 15 // सिरिवद्धमाणपहुणा, सुधम्मलाभु त्ति जीए पट्ठविओ / सा जयउ जए सुलसा, सारयससिविमलसीलगुणा हरिहरबंभपुरंदर-मयभंजण पंचबाणबलदप्पो / लीलाइ जेण दलिओ, स थूलभद्दो दिसउ भदं मणहरतारुनभरे, पत्थिज्जंतो वि तरुणिनियरेणं / सुरगिरिनिच्चलचित्तो, सो वयरमहारिसी जयउ थुणिउं तस्स न सक्का, सड्ढस्स सुदंसणस्स गुणनिवहं। जो विसमसंकडेसु वि, पडिओ वि अखंडसीलधणो सुंदरि-सुनंद-चिल्लण-मणोरमा-अंजणा-मिगावई अ। जिणसासणसुपसिद्धा, महासईओ सुहं दितु अच्वंकारिअ दठूण को न धुणइ किर सीसं / जा अखंडिअसीला, भिल्लवईकयत्थिआ वि नियमित्तं नियभाया, नियजणओ नियपियामहो वा वि / नियपुत्तो वि कुसीलो, न घल्लहो होइ लोआणं सव्वेसि पि वयाणं, भग्गाणं अत्थि कोइ पडिआरो / पक्कघडस्स व कन्ना, ना होइ सीलं पुणो भग्गं वेआलभूअरक्खस-केसरिचित्तयगइंदसप्पाणं / लीलाइ दलइ दप्पं, पालंतों निम्मलं सीलं जे केइ कम्ममुक्का, सिद्धा सिझंति सिज्झिहिंति तहा / सव्वेसि तेसिं बलं, विसालसीलस्स माहप्पं // 16 // // 17 // // 18 // // 19 // // 20 //