________________ भाण्डागारिकश्रीनेमिचन्द्रविरचितम् / / ॥षष्ठिशतकम् // अरहं देवो सुगुरू सुद्धं धम्मं च पंचनवकारो। धन्नाण कयत्थाणं निरंतरं वसइ हिययम्मि - // 1 // जइ न कुणसि तव चरणं, न पढसि न गुणेसि देसि नो दाणं। ता इत्तियं न सक्कसि, जं देवो इक्क अरहंतो // 2 // रे जीव ? भवदुहाई, इक्कं चिय हरइ जिणमयं धम्मं / इयराणं पणमंतो सुहकज्जे मूढ ? मुसिओ सि . // 3 // देवेहिं दाणवेहि य सुओ मरणाओ रक्खिओ कोइ। दढकयजिणसमत्ता, बहुयवि अजरामरं पत्ता // 4 // जह कुवि वेसारत्तो, मुसिज्जमाणो वि मन्नए हरिसं / तह मिच्छवेसमुसिया गयं पि न मुणंति धम्मनिहि लोयपवाहे सकुल-क्कमम्मि जइ होइ मूढधम्मु त्ति / ता मिच्छाण वि धम्मो, थक्का य अहम्मपरिवाडी .. लोयम्मि रायनीई, नायं न कुलक्कमम्मि कइया वि। किं पुण तिलोयपहुणो, जिणंदधम्माहिगारम्मि // 7 // जिणवयणवियन्नूण वि जीवाणं जं न होइ भवविरई / ता कह अवियन्नृणं मिच्छत्तहयाण पासम्मि // 8 // विरयाणं अव्विरए, जीवे दळूण होइ मणतावो / हा हा कह भवकूवे बुड्डता पिच्छ नच्चंति आंरभजम्मि पावे जीवा पावंति तिक्खदुक्खाई। जं पुण मिच्छत्तलवं तेण न लहंति जिणबोहिं जिणवरआणाभंगं उम्मग्गउस्सुत्तलेसदेसणयं / आणाभंगे पावं ता जिणमयदुक्करं धम्म // 11 // ર૦૦ // 9 //