________________ विग्गइगइमावन्ना, केवलीणो समुहया अज़ोगी य। सिद्धा य अणाहारा, सेसा आहारगा जीवा // 84 // ऊवसमसम्मदिट्ठी, अंतरकरणे वि लब्भइ को वि। . . देसविरई पि कोइ, पमत्तापमत्तं भावं पि __.. // 85 // सम्म-देस-सव्वविरई, अण-विसंजोयणा दंसणखवगे। मोहोसमसंतखवगे, खीणसजोगीअरगुणसेढि // 86 // . न कयं दीणुध्धरणं; न कयं साहम्मिआणं वच्छलं। हिययम्मि वीयराओ, न धारिओ हास्ओिं जम्मो // 87 // गंतुअ पोसहसालाए, ठायित्तु ठवणायरियं / वत्थकायविसुद्धिए करेइ पोसहाइयं // 88 // सामाइअम्मि उक्कए, समणो इव सावयो हवइ जम्हा / एएण कारणेणं बहुसो सामाइअं कुज्जा // 89 // सामाइय-पोसह-संट्ठियस्स जीवस्स जाइ जो कालो। सो सफलो बोधव्वो, सेसो संसारफल हेऊ .. // 90 // जो भणइ नत्थि धम्मो, न समाइअं न चेव य वयाई / सो समणसंघबज्जो, कायव्वो समणसंघेण // 91 // जत्थ पुरे जिणभवणं, समयवीउ साहु सावया जत्थ / तत्थ सया वसियव्वं, पउरजलमिधणं जत्थ आरंभे नत्थि दया, महिलासंगेणं नासए बंभ / संकाए सम्मत्तं, पव्वज्जा अत्थगहणेणं // 93 // संकप्पो संरंभो, परितावकरो होइ समारंभो / जीवाणं उद्दवओ, आरंभो चेव तईयं तु // 94 // इह छच्चगुण विणओवयार-माणाइभंग-गुरु पूया। .. तित्थयराण य आणा, सुयधम्माराहणा किरिया / // 95 // 268