________________ मूलुत्तरगुणविसया, पडिसेवणा पुलाय कुसीलो यः। उत्तरगुणेसु बउसो, सेसा पडिसेवणारहिया // 60 // छव्वय-छकायरक्खा, पंचिंदिय-लोहंनिग्गहो खंत्ती। ... भावं विसोही पडिलेहणाइ करणे विसोही य : // 61 // संजमजोएजुत्तो, अकुसलमणवयकायसंरोहो। सीयाइपीडसहणं, मरणं उवसग्गसहणं च // 62 // सायासायं दुक्खं, तविरहम्मि य सुहं जओ तेणं / / देहिदियेसु दुक्खं, सुक्खं देहिदिया भावे जो अपसत्थो रागो, वड्डइ संसारभमणपरिवाडी। विसयाइसु सयणाइसु, इट्टत्तं पुग्गलाईसु // 64 // पंचासवा विरत्ता, विसयविजुत्ता समाहिसंपत्ता / रागदोसा विमुत्ता, मुणिणो साहंति परमत्थं समयाए समणो होइ, बंब्भेण होइ बंब्मणो / नाणेण य मुणी होइ, तवेण होइ तावसो // 66 // नाणाईसु गुणेसु, धम्मोवगरण-साहम्मीएसु / अरिहंताइ-सुधम्मे, धम्मत्थं जो य गुणरागो // 67 // सो सुपसत्थो रागो, धम्मसंजोगकारणो गुणदो। पढमं कायव्वो सो, पत्तगुणे खवइ तं सव्वं // 68 // विसयरसासवमत्तो, जुत्ताजुत्तं न जाणई जीवो। झूरइ कलुणं पच्छा, पत्तो नरयं महाघोरं // 69 // जह निंबदुम्मपत्तो, कीडो कडुअं पि मन्नहे महुरं। तह सिद्धिसुहपरुक्खा, संसारदुहं सुहं बिति . // 70 // सामग्गिअभावाओ, ववहारियरासियं अप्पवेसाओ। भव्वा वि ते अणंता, जे सिद्धिसुहं न पावंति . // 1 //