________________ // 36 // // 37 // // 38 // // 39 // // 40 // // 41 // दव्वं सल्लक्खणियं, उप्पाय-व्वय-धुवत्तसंजुत्तं / गुणपज्जयासयं वा, जं तं भणंति सव्वन्नू दव्वं पज्जवविउत्तं, दव्वविउत्ता य पज्जवा नत्थि। उप्पायठिइभंगाइ, दव्वियं लक्खणं एयं भावस्स णत्थि णासो, णत्थि अभावस्स चेव उप्पाओ। गुणपज्जवेसु भावा, उप्पायवये पक्कुवंति। दंसणमूलो धम्मो, उवइट्ठो जिणवरेहिं सीसाणं / तं सोऊण सकन्ने, दंसणहीणो न वंदिव्वो . कालो सहाव नियइ, पुव्वकयं पुरीसकारेणं पंच। समवाए सम्मत्तं, एगंते होइ मिच्छत्तं दव्वं गुण-समुदाओ, खित्तं ओगाह वट्टणा कालो। गुण-पज्जायपवत्ति, भावो निअवत्थु धम्मो सो अशरीरा जीवघणा, उवउत्ता दंसणे य नाणे य / सागारमणागारं, लक्खणमेयं तु सिद्धाणं नाणम्मि दंसणमि य, एतो एगयरम्मी उवउत्तां / सव्वस्स केवलिस्स, जुगवं दो णत्थि उवओगा काले विणए य बहुमाणे, उवहाणे तह अनिन्हवणे। वंजणे-अत्थे तदुब्भये, अट्ठविहं नाणमायारो निस्संकियनिकंक्खिये, निवितिगिच्छिये अमूढदिट्ठिए / उवव्वुहथिरीकरणे, वच्छलप्पभावणे य अट्ठ सावज्ज जोग-विरई, उक्तित्तणं गुणवओ अ पडिवत्ति / - खलिअस्स निंदणा वणतिगिच्छा गुणधारणा चेव पडिसिद्धाणं करणे, किच्चाणमकरणे य पडिक्कमणं / असद्दहणाए तहा, विवरियपरूवणाए चेव 264 // 42 // // 43 // // 44 // // 45 // // 6 // // 47 //