________________ ॥संग्रहशतकम् // वीरं तिलोयनाहं, वंदिअ भणामि साररयणगाहा / आय-परहियट्ठाए, उद्धरिआ सुयसमुद्दाओ // 1 // नयर-रह-चक्क-पउमे, चंद्रे सूरे समुद्दख्-मेरुम्मि। जो उवमिज्जइ सययं, तं संघ गुणायरं वंदे // 2 // एगो साहु एगा य, साहुणी सावयो य साविया वा। आणाजुत्तो संघो, सेसो पुण अट्ठिसंघाओ // 3 // अम्मापियसारिच्छो, सिवघरथंभो य होइ जिणसंघो / जिणवर-आणाबज्झो, सप्पु व भयंकरो संघो // 4 // निव्वुइपहसासणयं, जयइ सया सव्वभावदेसगं च। कुसमयमयणासणयं, जिणंद वर वीर सासणायं . सव्वाइ जिणेसरभासिआई वयणाइं नन्नहा हुंति / इअ बुद्धि जस्स मणे, सम्मत्तं निच्चलं तस्स // 6 // देवो जिणिंदो गयरागदोसो, गुरु वि चारित्तरहस्सकोसो। जीवाइ तत्ताण य सद्दहाणं, सम्मत्तमेवं भणियं प्पहाणं // 7 // देवो जिणोऽट्ठारस दोसवज्जिओ, गुरु सुसाहुणो समलोट्ठकंचणो। धम्मो पुणो जीवदयाइ सुंदरो, सेवेह एवं रयणतयं सया // 8 // समद्दिट्ठी जीवो, जइ वि हु पावं समायरइ किंचि / अप्पो हि होइ बंधो, जेण न निलुद्धसं कुणइ // 9 // विरया सावज्जाओ, कसायहीणा महव्वयधरा वि / सम्मदिट्ठी विहूणा, कया वि मोक्खं न पावंति // 10 // सम्मत्तम्मि उ लध्धे, विमाणवज्जं न बंधए आऊ। जइ न विगयसम्मत्तो, अहव न बद्धाउओ पुज्विं // 11 // 271