________________ मिच्छत्ता विवरीअं, सव्वो लोओ वइज्ज सत्वं पि। जइ कत्थवि सम्मं तं, घुणअक्खरणायओ णेअं .. // 47 // णिज्जुत्ती अणुओगो, जस्स पमाणं खु तस्स सम्मत्तं / सेसाणं मिच्छत्तं, आगाढं वा अणागाढं // 48 // आगाढं पुण लोइअ-लोउत्तर भेअओ अ दुविगप्पं / तेसिमसग्गहदोसा, दोसो णिअमा अ जिणसमए // 49 // तुल्लाहिं किरियाहिं, ण होइ मग्गाणुसारि किच्चं पि। उप्पहपहकिरिआणं, तुल्लाण वि अंतरं गुरुअं . // 50 // जं ताओ किरिआओ, थिरयाहेऊ असग्गहाणं सिं। .. अण्णह अरिहंता इअ, सद्दहणा होइ सम्मत्तं // 51 // ता ससमग्गासग्गह-परिचायनिमित्तमेव जं किच्चं। सम्मत्तकारणं वा, तं खलु मग्गाणुसारित्ति // 52 // जं किंचि वि परसमए, णाभिमयं अभिमयं च जिणसमए। सम्मत्ताभिमुहाणं, तं खु असग्गहविणासयरं // 53 // तत्थवि जं लोउत्तर-मागाढतरं विराहगस्स तयं / जेणं हविञ्ज तेणं, दव्वेण वि अलियवयणु त्ति // 54 // देसेणं जिणवयणा-णुवाइणो तह वि ते न तहभूआ। णिअवयविरोहिवयणं, जिणिंदवुत्तं पि णो वुत्तं // 55 // जह विसलित्ते पत्ते, दुद्धं ववहारओ विसं इहरा / एवं उस्सुत्तजुए, पत्ते सुत्तं पि विनेअं // 56 // लोइयमिच्छादिट्ठी, सम्मदिट्ठि व्व वयणमित्तस्स / अणुवाए अविवाई, णिच्छयओ दव्वसच्चवया // 57 // सव्वे वि अणुवाया, णिअमा दव्वाओ सच्चवयंणाई / अणुवाए अविवाओ, जमणुण्णं सव्ववाईणं // 58 // 256