________________ // 700 // पापाहणा उ गुरुपरिवारो गच्छो तत्थ वसंताण निज्जरा विउला / विणयाओ तह सारणमाईहिं न दोसपडिवत्ती // 696 // केसिंचि विणयकरणं अन्नेसिं कारणं अइपसत्थं / नासंतकुसलजोए सारणमवि होइ एमेव // 697 // एमेव य विण्णेअं अहियपवित्तीऍ वारणं एत्थं / अहिअयरे किच्चम्मि अ चोअणमिइ सपरफलसिद्धी // 698 // अण्णोण्णाविक्खाए जोगम्मि तहिं तहिं पयट्टतो / निअमेण गच्छवासी असंगपयसाहगो भणिओ // 699 // सारणमाइविउत्तं गच्छं पि हु गुणगणेहिं परिहीणं / परिचत्तणाइवग्गो चइज्ज तं सुत्तविहिणा उ सीसो सज्झिलओं वा गणिव्वओ वा न सोग्गइं नेइ। जे तत्थ नाणदंसणचरणा ते सुग्गईमग्गो // 701 // नणु गुरुकुलवासम्मी जायइ नियमेण गच्छवासो उ। जम्हा गुरुपरिवारो गच्छो त्ति निदंसिअं पुल्विं // 702 // सच्चमिणं तंमज्झे तदेगलद्धीऍ तदुचिअकमेणं / जह होज्ज तस्स हेऊ वसिज्ज तह खावणत्थमिणं // 703 // मोत्तूण मिहुवयारं अण्णोऽण्णगुणाइभावसंबंद्धं / छत्त(त्र)मढछत्ततुल्लो वासो उ ण गच्छवासो त्ति // 704 // एवं वसहाईसु वि जोइज्जा ओघसुद्धभावे वि। सइ थेरदिन्नसंथारगाइभोगेण साफल्लं // 705 // मूलुत्तरगुणसुद्धं थीपसुपंडगविवज्जिअं वसहिं / सेविज्ज सव्वकालं विवज्जए होति दोसा उ // 706 // पट्टीवंसो दो धारणाउ चत्तारि मूलवेलीओ। मूलगुणेहुववेआ एसा उ अहागडा वसही // 707 //